भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"'क़ैसर'-उल जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
|कृतियाँ= | |कृतियाँ= | ||
|विविध= | |विविध= | ||
− | + | |अंग्रेज़ीनाम=Kaisar-ul Jafari | |
− | |अंग्रेज़ीनाम= | + | |
|जीवनी=[['क़ैसर'-उल जाफ़री / परिचय]] | |जीवनी=[['क़ैसर'-उल जाफ़री / परिचय]] | ||
}} | }} | ||
{{KKShayar}} | {{KKShayar}} | ||
+ | ====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ==== | ||
* [[बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री]] | * [[बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री]] | ||
* [[दश्त-ए-तन्हाई में कल रात हवा कैसी थी / 'क़ैसर'-उल जाफ़री]] | * [[दश्त-ए-तन्हाई में कल रात हवा कैसी थी / 'क़ैसर'-उल जाफ़री]] |
22:30, 15 सितम्बर 2016 का अवतरण
'क़ैसर'-उल जाफ़री
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
जन्म | 1926 |
---|---|
निधन | 2005 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
'क़ैसर'-उल जाफ़री / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दश्त-ए-तन्हाई में कल रात हवा कैसी थी / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- घर बसा कर भी मुसाफिर के मुसाफिर ठहरे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- हवा बहुत है मता-ए-सफर सँभाल के रख / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- सारी दुनिया के तअल्लुक से जो सोचा जाता / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- सदियों तवील रात के ज़ानूँ से सर उठा / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- तेरी बे-वफाई के बाद भी मेरे दिल का प्यार नहीं गया / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- यूँ बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- ज़ेहन में कौन से आसेब का दर बाँध लिया / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- इतना सन्नाटा है बस्ती में कि डर जाएगा / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- डूबने वालो हवाओं का हुनर कैसा लगा / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- तिरी गली में तमाशा किए ज़माना हुआ / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दिन की बेदर्द थकन चेहरे पे ले कर मत जा / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दिल की आग कहाँ ले जाते जलती बुझती छोड़ चले / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- फिर मिरे सर पे कड़ी धूप की बौछार गिरी / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- मैं पिछली रात क्या जाने कहाँ था / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- मुंतशिर ज़ेहन की सोचों को इकट्ठा कर दो / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- मुसाफ़िरों का कभी ए'तिबार मत करना / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- वो एक ख़ेमा-ए-शब जिस का नाम दुनिया था / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- शहर-ए-ग़ज़ल में धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा / 'क़ैसर'-उल जाफ़री
- ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए आँख कँवल हो जाए / 'क़ैसर'-उल जाफ़री