भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर सास के आगे / वचनेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=वचनेश
 
|रचनाकार=वचनेश
 +
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
[[Category:छंद]]
 
[[Category:छंद]]
 
+
<poem>
 
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
 
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
 
 
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
 
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
 
 
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
 
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
 
 
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
 
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
 
 
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश
 
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश
 +
</poem>

23:12, 7 जून 2021 के समय का अवतरण

घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश