भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नारी / उमा शंकर सिंह परमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा शंकर सिंह परमार |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
तुम बेटी भी नही  
 
तुम बेटी भी नही  
 
नारी तुम केवल  
 
नारी तुम केवल  
माँस का खूबसूरत टुकडा हो  
+
माँस का खूबसूरत टुकड़ा हो  
  
 
पिशाचों की सैन्य टुकडी से  
 
पिशाचों की सैन्य टुकडी से  

02:44, 23 मई 2016 का अवतरण

घुमावदार
सुरक्षा घेरा
खींच दिया है —
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता

मैं देख रहा हूँ
घेरे के बीचों-बीच
खूखती हुई रिश्तों
की नमी, झुलसते हुए विश्वास


अब तुम नहीं हो माँ
अब तुम नही हो बहन
तुम बेटी भी नही
नारी तुम केवल
माँस का खूबसूरत टुकड़ा हो

पिशाचों की सैन्य टुकडी से
रौंदी गई
श्रद्धा की लहलहाती फ़सल
प्रमाचार-पर्वतारोहियों के लिए
यौनाचार-शिखर की उत्सुकता
मैं देख रहा हूँ
समय की पीठ पर सवार
नैतिकता
फुटपाथों पर शब्द बेच रही है
 
तुम्हारे जिस्म से रिसती
रक्तधाराओं ने
ख़त्म कर दिया है
शब्द-शक्तियों का वजूद

मैं शर्मिन्दा हूँ
मै अवाक् हूँ
कैसे कह दूँ तुमसे
कि तुम हो
तुम्हारी पूजा है
जहाँ तुम्हारी पूजा है
वहाँ देवता हैं