Changes

विनती / अमरेन्द्र

809 bytes removed, 02:42, 10 जून 2016
बनौं जगत के सूरज-चान
भारतमाय के राखौं शान ।
नानी सेॅ गुहार
नानी, नानी पानी दे
गंदा छौ तेॅ छानी दे ।
 
भोरे दूध पिलैलोॅ कर
राती लोरी गैलोॅ कर
हमरे साथ नहैलोॅ कर
हमरे साथें खैलोॅ कर
चूलो चोटी बान्ही दे
भात-दाल सब रान्ही दे ।
की बोलै छैं ? गिनती गिन
सुनथैं माथोॅ भिन-भिन भिन
खेलभौ, रात हुवेॅ कि दिन
की करभैं होय्ये आगिन
पुल्ली-डंडा लानी दे
ऐंगन्हैं खच्चो खानी दे ।
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits