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विनती / अमरेन्द्र
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02:42, 10 जून 2016
बनौं जगत के सूरज-चान
भारतमाय के राखौं शान ।
नानी सेॅ गुहार
नानी, नानी पानी दे
गंदा छौ तेॅ छानी दे ।
भोरे दूध पिलैलोॅ कर
राती लोरी गैलोॅ कर
हमरे साथ नहैलोॅ कर
हमरे साथें खैलोॅ कर
चूलो चोटी बान्ही दे
भात-दाल सब रान्ही दे ।
की बोलै छैं ? गिनती गिन
सुनथैं माथोॅ भिन-भिन भिन
खेलभौ, रात हुवेॅ कि दिन
की करभैं होय्ये आगिन
पुल्ली-डंडा लानी दे
ऐंगन्हैं खच्चो खानी दे ।
</poem>
Rahul Shivay
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