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"दाग / जयप्रकाश मानस" के अवतरणों में अंतर

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समुद्र की समूची देह पर
 
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जागती है चाँदनी
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लेकिन देखने वाले
 
लेकिन देखने वाले

18:39, 17 अप्रैल 2008 के समय का अवतरण

इस समय

नहीं दीख रहा कछुए का श्रीमुख

मेंढक भी थक चुके टर्रा-टर्रा कर

नावें थिरक गयी हैं डाल लंगर

सपनों के लिए चली गईं मछलियाँ

गहराइयों में

सीप भी अचल आँखें खोले तटों में

घुस गए हैं केंचुए गीली मिट्टियों में

समुद्र की समूची देह पर

जागती है चांदनी

चांद नहीं है समुद्र में

लेकिन देखने वाले

देख ही लेते हैं

दाग़ सिर्फ़ दाग़