"बहनें / आभा बोधिसत्त्व" के अवतरणों में अंतर
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बहनें होती हैं, | बहनें होती हैं, | ||
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अनबुझ पहेली-सी | अनबुझ पहेली-सी | ||
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जिन्हें समझना या सुलझाना | जिन्हें समझना या सुलझाना | ||
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इतना आसान नही होता जितना | इतना आसान नही होता जितना | ||
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लटों की तरह उलझी हुई दुनिया को , | लटों की तरह उलझी हुई दुनिया को , | ||
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इन्हें समझते और सुलझाते ...में | इन्हें समझते और सुलझाते ...में | ||
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विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब | विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब | ||
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इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ... | इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ... | ||
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कोई बन्द तिजोरी... | कोई बन्द तिजोरी... | ||
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जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई... | जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई... | ||
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देखते सिर्फ़... | देखते सिर्फ़... | ||
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या ...कि होती ... | या ...कि होती ... | ||
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सांझ का दिया ... | सांझ का दिया ... | ||
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जिनके बिना ... | जिनके बिना ... | ||
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न होती कहीं रोशनी... | न होती कहीं रोशनी... | ||
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पर नही़ | पर नही़ | ||
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बहनें तो पानी होती हैं | बहनें तो पानी होती हैं | ||
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बहती हैं... इस घर से उस घर | बहती हैं... इस घर से उस घर | ||
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प्यास बुझातीं | प्यास बुझातीं | ||
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जी जुड़ातीं...किस-किस का | जी जुड़ातीं...किस-किस का | ||
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किस-किस के साथ विदा | किस-किस के साथ विदा | ||
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हो जातीं चुपचाप... | हो जातीं चुपचाप... | ||
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दूर तक सुनाई देती उनकी | दूर तक सुनाई देती उनकी | ||
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रुलाई... | रुलाई... | ||
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कुछ दूर तक आती है...माँ | कुछ दूर तक आती है...माँ | ||
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कुछ दूर तक भाई | कुछ दूर तक भाई | ||
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सखियाँ थोड़ी और दूर तक | सखियाँ थोड़ी और दूर तक | ||
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चलती हैं रोती-धोती | चलती हैं रोती-धोती | ||
... ... | ... ... | ||
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फिर वे भी लौट जाती हैं घर | फिर वे भी लौट जाती हैं घर | ||
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विदा के दिन का | विदा के दिन का | ||
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इंतज़ार करने... | इंतज़ार करने... | ||
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इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं... | इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं... | ||
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भाई या कोई...। | भाई या कोई...। | ||
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23:32, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बहनें होती हैं,
अनबुझ पहेली-सी
जिन्हें समझना या सुलझाना
इतना आसान नही होता जितना
लटों की तरह उलझी हुई दुनिया को ,
इन्हें समझते और सुलझाते ...में
विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब
इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ...
कोई बन्द तिजोरी...
जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई...
देखते सिर्फ़...
या ...कि होती ...
सांझ का दिया ...
जिनके बिना ...
न होती कहीं रोशनी...
पर नही़
बहनें तो पानी होती हैं
बहती हैं... इस घर से उस घर
प्यास बुझातीं
जी जुड़ातीं...किस-किस का
किस-किस के साथ विदा
हो जातीं चुपचाप...
दूर तक सुनाई देती उनकी
रुलाई...
कुछ दूर तक आती है...माँ
कुछ दूर तक भाई
सखियाँ थोड़ी और दूर तक
चलती हैं रोती-धोती
... ...
फिर वे भी लौट जाती हैं घर
विदा के दिन का
इंतज़ार करने...
इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं...
भाई या कोई...।