भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: माँ रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे दूध बिलौने से पहले माँ चक्की पीसती, और म...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
माँ | माँ |
13:49, 27 अप्रैल 2008 का अवतरण
माँ
रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे दूध बिलौने से पहले माँ चक्की पीसती, और मैं घूमेड़े में आराम से सोता .
- तारीफ़ों में बँधीं माँ जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा .
आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है -
पिसती चक्की थी या माँ
माँ .