"मुरली चंद्राकर / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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1973 में ‘सोनहा विहान’ में गीत लिखे। ‘पुष्पांजलि’ नाम का कैसेट बम्बई में रिकार्ड। रचनाओं में देख देवर बाबू तोर भइया के चाल, जिनगी के नई हे ठिकाना और बैरी पैरी ल चिटको शरम नई लागे आदि। | 1973 में ‘सोनहा विहान’ में गीत लिखे। ‘पुष्पांजलि’ नाम का कैसेट बम्बई में रिकार्ड। रचनाओं में देख देवर बाबू तोर भइया के चाल, जिनगी के नई हे ठिकाना और बैरी पैरी ल चिटको शरम नई लागे आदि। | ||
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+ | गीतकार दाऊ मुरली चंद्राकर जी का जन्म अप्रैल 1931 में उनके पैत्रिक ग्राम औंरी में हुआ, पिता – स्व.दाऊ महादेव चंद्राकर तथा माता बेदीन बाई के छै पुत्रो में दाऊ जी तीसरे नम्बर के है, कला संगीत की तपोभूमि ‘अरजुन्दा’ में दाऊ जी का बचपन और यौवन बिता। वैसे तो हर कलाकार की कला भगवान की देन होती है, खैरागढ़ के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ भट इनके गुरु थे जिनके सानिध्य में दाऊ जी ने “तबले” के साथ संगीत को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। इनकी संगीतमयी तपस्या का एक सशक्त स्वरुप यह भी है की दाऊ जी जितने अच्छा लिखते है उतने ही अच्छा गाते भी है। दाऊ जी ने सेक्टर-2 भिलाई स्टील प्लांट (दुर्ग) के कन्या शाला में बतौर संगीत शिक्षक कार्य किये, इस बीच वे शिक्षक नगर दुर्ग में निवासरत रहे। | ||
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+ | दाऊ महासिंग चंद्राकर और रामचंद्र देशमुख जैसे कला पुरोधा के साथ काम करने वाले गीतकार दाऊ मुरली चंद्राकर जी के द्वारा लिखे गीत अपने ज़माने में काफी धूम मचाई है। लोक कला मंच “सोनहा बिहान” तथा “कारी” जैसे नाट्य मंचो को दाऊ जी ने अपनी गीत तथा संगीत से सराबोर किया है। यही कारण है की आज भी उनके गीत लोगों की जुबान पर चढ़ जाते है। | ||
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+ | इनकी एकमात्र प्रकाशित छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह “मुरली के धुन” का छत्तीसगढ़ी साहित्य में अपना एक अलग स्थान है। जो हमारे जैसे नवगीतकारों कलाकारों को प्रेरणा देती रहेगी। दाऊ जी का व्यक्तित्व स्पष्टवादी, निर्भयता और मस्तमौला पुरुष का रहा है। भावनात्मक जीवन शैली से परिपूर्ण दाऊ जी की रचनाओं में श्रृंगार रस के साथ साथ राग विराग की छवि भीतर तक छूती है। | ||
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+ | दाऊ जी के गीतों की अपनी एक अलग बानगी तथा भीतर तक उतरने की ह्रदय स्पर्शी शैली है। जो सुनने वाले को भाव विभोर कर देती है। दाऊ-जी गीत लिखने के साथ साथ अपने द्वारा बनाई गयी धुनों पर गाते भी है। दाऊ जी के साथ समय गुजरना किसी ठंडी छाया की शांति से कमतर नहीं लगता। मैं शुरू से ही दाऊ जी के गीतों का कायल रहा हु तथा उन्हें अपना प्रेरणा श्रोत गुरु मानता हूं। दाऊ जी प्रसिद्ध रंगकर्मी रामहृदय तिवारी जी के पहले हिंदी नाटक ‘अँधेरे के उसपर’ के गीतकार तथा संगीत निर्देशक रह चुके है। | ||
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+ | दाऊ जी के गीतों ने छत्तीसगढ़ी लोक कला को अत्यंत समृद्ध रूप दिया है। इनके गीत मौलिकता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। कला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होता है, इस माध्यम का उपयोग करने के लिए बड़ी तपस्या की आवश्यकता होती है। दाऊ जी के गीतों में वो तपस्या और साधना स्वमेव झलकती है। | ||
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+ | दाऊ मुरली चंद्राकर के गीतों का प्राणतत्व है – भाव प्रवणता। जो इनके गीतों की अविछिन्न परम्परा को उजागर करती है। दाऊ जी छत्तीसगढ़ी कला और संस्कृती के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहे है। इनके गीत सांस्कृतिक जागरण के प्रतिक है। दाऊ जी के गीतों की शैली बहुत विरल है जिसमे संगीत की अविरल धारा बहती है। इनके गीत अंचल के किसानों की पीरा, गाँव के दुख-दर्द और छत्तीसगढ़िया पन की झलक दिखाते है जो अंचल के लिए अमूल्य निधि के सामान है। | ||
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+ | दाऊ-जी के गीत सुनने वाले को तुरन्त किसी अपरिभाषित व्यक्तित्व का अहसास कराती है, विशेष सांस्कृतिक दृश्य उभरने लगता है, जीवन के विविध इन्द्रधनुषी छाटाओं के साथ ही आल्हादकारी, संगीतमयी, सांस्कृतिक मनोरंजन, सहकारिता, मया पिरित की भावना का दर्शन होता है, यही कारण है की दाऊ जी के गीत केवल मनोरंजन का साधन न होकर सांस्कृतिक धरोहर सी प्रतीत होती है। घर आंगन, खेत-खलिहान, मंदिर चौपाल, हाट बाजार, मेला मड़ाई, बाग-बगीचा ऐसी कौन सी जगह नहीं है जहा दाऊ-जी के शब्दों ने दस्तक न दिए हो, गाँव के बाहर चरवाहे की बंसी की तान हो या कुंए में पानी भरती ग्राम बालाओं के बिच हंसी ठिठोली, प्रेम में डूबी प्रेयसी की पीरा हो या खेतों में झूमते फसलो को देखकर बौछाये किसान का प्रफुलित मन, दाऊ मुरली चंद्राकर जीवन के हर पहलु को अपने अंदाज में अपने गीतों के माध्यम से जिया है। | ||
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+ | इनके गीत कंठ से निकलते ही अत्मिक सुख का अनुभव कराती है। वर्तमान के संग अतीत की स्मृतयो में गोते लगवाती है, इनके गीतों की स्वर लहरिया हमें कुछ नया और नया करने के लिए प्रेरित करती है, छत्तीसगढ़िया-पन की मार्मिक अभिव्यंजना का चित्रण इनके गीतों में मिलता है, इनके गीतों में छलकती मस्ती, प्रेम-अनुराग, सौन्दर्य, लालित्य, श्रृंगार की बहुलता और पसीने के बूंदों की महक सब-कुछ खोकर भी जीवन पर्यंत मुस्कुराने की परंपरा कायम की है। दाऊ मुरली चंद्राकर जी एक ऐसे शख्सियतो में शुमार है जो अपनी बात मनवाने के लिए जाने जाते रहे है, गलतियों पर खखुवाने वाले इस अवधूत के गीतों की शब्दों में गजब की कसावट है इनके गीतों की बानगी लोकगीतों के काफी करीब है जिसमें स्वरों का ऐसा रंग चड़ा है जो सुनने वाले को स्वयं गुनगुनाने के लिए बाध्य करता है। बादशाही फितरत के धनि इस शब्दों के जादूगर की गीत शैली सुनने वाले को विशेष आनंद से सराबोर कर देती है। | ||
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22:51, 24 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
1973 में ‘सोनहा विहान’ में गीत लिखे। ‘पुष्पांजलि’ नाम का कैसेट बम्बई में रिकार्ड। रचनाओं में देख देवर बाबू तोर भइया के चाल, जिनगी के नई हे ठिकाना और बैरी पैरी ल चिटको शरम नई लागे आदि।
गीतकार दाऊ मुरली चंद्राकर जी का जन्म अप्रैल 1931 में उनके पैत्रिक ग्राम औंरी में हुआ, पिता – स्व.दाऊ महादेव चंद्राकर तथा माता बेदीन बाई के छै पुत्रो में दाऊ जी तीसरे नम्बर के है, कला संगीत की तपोभूमि ‘अरजुन्दा’ में दाऊ जी का बचपन और यौवन बिता। वैसे तो हर कलाकार की कला भगवान की देन होती है, खैरागढ़ के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ भट इनके गुरु थे जिनके सानिध्य में दाऊ जी ने “तबले” के साथ संगीत को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। इनकी संगीतमयी तपस्या का एक सशक्त स्वरुप यह भी है की दाऊ जी जितने अच्छा लिखते है उतने ही अच्छा गाते भी है। दाऊ जी ने सेक्टर-2 भिलाई स्टील प्लांट (दुर्ग) के कन्या शाला में बतौर संगीत शिक्षक कार्य किये, इस बीच वे शिक्षक नगर दुर्ग में निवासरत रहे।
दाऊ महासिंग चंद्राकर और रामचंद्र देशमुख जैसे कला पुरोधा के साथ काम करने वाले गीतकार दाऊ मुरली चंद्राकर जी के द्वारा लिखे गीत अपने ज़माने में काफी धूम मचाई है। लोक कला मंच “सोनहा बिहान” तथा “कारी” जैसे नाट्य मंचो को दाऊ जी ने अपनी गीत तथा संगीत से सराबोर किया है। यही कारण है की आज भी उनके गीत लोगों की जुबान पर चढ़ जाते है।
इनकी एकमात्र प्रकाशित छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह “मुरली के धुन” का छत्तीसगढ़ी साहित्य में अपना एक अलग स्थान है। जो हमारे जैसे नवगीतकारों कलाकारों को प्रेरणा देती रहेगी। दाऊ जी का व्यक्तित्व स्पष्टवादी, निर्भयता और मस्तमौला पुरुष का रहा है। भावनात्मक जीवन शैली से परिपूर्ण दाऊ जी की रचनाओं में श्रृंगार रस के साथ साथ राग विराग की छवि भीतर तक छूती है।
दाऊ जी के गीतों की अपनी एक अलग बानगी तथा भीतर तक उतरने की ह्रदय स्पर्शी शैली है। जो सुनने वाले को भाव विभोर कर देती है। दाऊ-जी गीत लिखने के साथ साथ अपने द्वारा बनाई गयी धुनों पर गाते भी है। दाऊ जी के साथ समय गुजरना किसी ठंडी छाया की शांति से कमतर नहीं लगता। मैं शुरू से ही दाऊ जी के गीतों का कायल रहा हु तथा उन्हें अपना प्रेरणा श्रोत गुरु मानता हूं। दाऊ जी प्रसिद्ध रंगकर्मी रामहृदय तिवारी जी के पहले हिंदी नाटक ‘अँधेरे के उसपर’ के गीतकार तथा संगीत निर्देशक रह चुके है।
दाऊ जी के गीतों ने छत्तीसगढ़ी लोक कला को अत्यंत समृद्ध रूप दिया है। इनके गीत मौलिकता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। कला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होता है, इस माध्यम का उपयोग करने के लिए बड़ी तपस्या की आवश्यकता होती है। दाऊ जी के गीतों में वो तपस्या और साधना स्वमेव झलकती है।
दाऊ मुरली चंद्राकर के गीतों का प्राणतत्व है – भाव प्रवणता। जो इनके गीतों की अविछिन्न परम्परा को उजागर करती है। दाऊ जी छत्तीसगढ़ी कला और संस्कृती के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहे है। इनके गीत सांस्कृतिक जागरण के प्रतिक है। दाऊ जी के गीतों की शैली बहुत विरल है जिसमे संगीत की अविरल धारा बहती है। इनके गीत अंचल के किसानों की पीरा, गाँव के दुख-दर्द और छत्तीसगढ़िया पन की झलक दिखाते है जो अंचल के लिए अमूल्य निधि के सामान है।
दाऊ-जी के गीत सुनने वाले को तुरन्त किसी अपरिभाषित व्यक्तित्व का अहसास कराती है, विशेष सांस्कृतिक दृश्य उभरने लगता है, जीवन के विविध इन्द्रधनुषी छाटाओं के साथ ही आल्हादकारी, संगीतमयी, सांस्कृतिक मनोरंजन, सहकारिता, मया पिरित की भावना का दर्शन होता है, यही कारण है की दाऊ जी के गीत केवल मनोरंजन का साधन न होकर सांस्कृतिक धरोहर सी प्रतीत होती है। घर आंगन, खेत-खलिहान, मंदिर चौपाल, हाट बाजार, मेला मड़ाई, बाग-बगीचा ऐसी कौन सी जगह नहीं है जहा दाऊ-जी के शब्दों ने दस्तक न दिए हो, गाँव के बाहर चरवाहे की बंसी की तान हो या कुंए में पानी भरती ग्राम बालाओं के बिच हंसी ठिठोली, प्रेम में डूबी प्रेयसी की पीरा हो या खेतों में झूमते फसलो को देखकर बौछाये किसान का प्रफुलित मन, दाऊ मुरली चंद्राकर जीवन के हर पहलु को अपने अंदाज में अपने गीतों के माध्यम से जिया है।
इनके गीत कंठ से निकलते ही अत्मिक सुख का अनुभव कराती है। वर्तमान के संग अतीत की स्मृतयो में गोते लगवाती है, इनके गीतों की स्वर लहरिया हमें कुछ नया और नया करने के लिए प्रेरित करती है, छत्तीसगढ़िया-पन की मार्मिक अभिव्यंजना का चित्रण इनके गीतों में मिलता है, इनके गीतों में छलकती मस्ती, प्रेम-अनुराग, सौन्दर्य, लालित्य, श्रृंगार की बहुलता और पसीने के बूंदों की महक सब-कुछ खोकर भी जीवन पर्यंत मुस्कुराने की परंपरा कायम की है। दाऊ मुरली चंद्राकर जी एक ऐसे शख्सियतो में शुमार है जो अपनी बात मनवाने के लिए जाने जाते रहे है, गलतियों पर खखुवाने वाले इस अवधूत के गीतों की शब्दों में गजब की कसावट है इनके गीतों की बानगी लोकगीतों के काफी करीब है जिसमें स्वरों का ऐसा रंग चड़ा है जो सुनने वाले को स्वयं गुनगुनाने के लिए बाध्य करता है। बादशाही फितरत के धनि इस शब्दों के जादूगर की गीत शैली सुनने वाले को विशेष आनंद से सराबोर कर देती है।