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:स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
:मानों '''झीम''' <ref>झपकी लेना</ref> रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ '''( झीम= झपकी लेना)'''
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
:पर अपना हित आप नहीं क्या, कर सकता है यह नरलोक!
</poem>
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