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"न गुल-ए-नग़्मा हूँ / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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<poem>न गुल-ए-नग़्मा हूँ, न परदा-ए-साज़
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मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
  
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नहीं दिल में मेरे वह क़तरा-ए-ख़ूँ<br>
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नहीं दिल में तेरे वो क़तरा-ए-ख़ूं
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जिस से मिज़गां<ref>पलकें</ref> हुई न हो गुलबाज़<ref>फूलों से खेलनेवाली</ref>
  
ऐ तेरा ग़मज़ा-ए-यक क़लम अंगेज़<br>
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मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
ऐ तेरा ज़ुल्म-ए-सर बसर अंदाज़<br><br>
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मैं गरीब और तू ग़रीब-नवाज़
  
तू हुआ जलवागर मुबारक हो<br>
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असदुल्लाह ख़ां तमाम हुआ
रेज़िश-ए-सिजदा-ए-जबीन-ए-न्याज़<br><br>
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ऐ दरेग़ा<ref></ref> वह रिंद-ए-शाहिदबाज़<ref></ref></poem>
 
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मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ<br>
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असदुल्लाह ख़ां तमाम हुआ<br>
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ऐ दरेग़ा वह रिंद-ए-शाहिदबाज़
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10:26, 2 मार्च 2010 का अवतरण

न गुल-ए-नग़्मा हूँ, न परदा-ए-साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़

तू, और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल<ref>जुल्फ़ों का श्रृंगार</ref>
मैं, और अंदेशा-हाए-दूरो-दराज़<ref>दूर-दूर की शंकाएं</ref>

लाफ़-ए-तमकीं<ref>सहन करने का दावा</ref> फ़रेब-ए-सादा-दिली<ref>सरलह्रदयता का धोखा</ref>
हम हैं, और राज़ हाए-सीना-ए-गुदाज़

हूँ गिरफ़्तारे उल्फ़त-ए-सैयाद<ref>शिकारी के प्रेम में बंदी</ref>
वरना बाक़ी है ताक़ते परवाज़

वो भी दिन हो कि उस सितमगर से
नाज़ खींचूं बजाय हसरते-नाज़

नहीं दिल में तेरे वो क़तरा-ए-ख़ूं
जिस से मिज़गां<ref>पलकें</ref> हुई न हो गुलबाज़<ref>फूलों से खेलनेवाली</ref>

मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं गरीब और तू ग़रीब-नवाज़

असदुल्लाह ख़ां तमाम हुआ
ऐ दरेग़ा<ref></ref> वह रिंद-ए-शाहिदबाज़<ref></ref>

शब्दार्थ
<references/>