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गळगचिया (55) / कन्हैया लाल सेठिया
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10:33, 17 मार्च 2017
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बाँस कयो- मिनख म्हारै फूल लागै न फळ फेर मनै किस्यै लालच स्यूँ जड़ मूळ स्यूँ काटै है ?
मिनख बोल्यो- गुणहीण री थोथी ऊँचाई म्हारै स्यूँ कोनी देखीजै।
</poem>
आशीष पुरोहित
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