Changes

{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
बाँस कयो- मिनख म्हारै फूल लागै न फळ फेर मनै किस्यै लालच स्यूँ जड़ मूळ स्यूँ काटै है ?
मिनख बोल्यो- गुणहीण री थोथी ऊँचाई म्हारै स्यूँ कोनी देखीजै।
</poem>