भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} वो तो सब की राम ...)
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
  
 
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर <br>
 
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर <br>
चढी नदी से खारा पानी कहता है|<br><br>
+
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|<br><br>
  
 
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,<br>
 
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,<br>
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
  
 
शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,<br>
 
शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,<br>
उलझी बाते सरल बयानी कहता है |<br><br>
+
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |<br><br>
  
 
इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,<br>
 
इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,<br>
 
सब की जानी और पहचानी कहता है|
 
सब की जानी और पहचानी कहता है|

08:15, 13 जून 2008 का अवतरण

वो तो सब की राम कहानी कहता है|
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है|

रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|

स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|

शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |

इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है|