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"ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
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इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,<br> | इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,<br> | ||
सब की जानी और पहचानी कहता है| | सब की जानी और पहचानी कहता है| |
08:15, 13 जून 2008 का अवतरण
वो तो सब की राम कहानी कहता है|
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है|
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|
शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |
इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है|