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"चार शेर / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है | भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है |
19:12, 1 जून 2008 के समय का अवतरण
देख की अपनी बेक़सी किसलिए जी में हो खफ़ीफ़
मूनिस हमनवाँ मेरे बेहरो-क़वाफ़ियो-रदीफ़
आज वो हो चुका जो था आपका आशिक़ नज़ार
दौरे-जहाँ से उठ गया हुस्न का परतव लतीफ़
देखना दर पे कौन अभी देता हुआ सदा गया
और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़
भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है
आह ज़माना भी है कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़
(1955 में रचित)