"गरीब वेश्या की मौत / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी | |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी | ||
|संग्रह = ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है / लीलाधर जगूड़ी | |संग्रह = ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है / लीलाधर जगूड़ी | ||
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कल-पुर्जों की तरह थकी टांगें, थके हाथ | कल-पुर्जों की तरह थकी टांगें, थके हाथ | ||
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उसके साथ | उसके साथ | ||
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जब जीवित थी | जब जीवित थी | ||
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लग्गियों की तरह लंबी टांगें | लग्गियों की तरह लंबी टांगें | ||
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जूतों की तरह घिसे पैर | जूतों की तरह घिसे पैर | ||
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लटके होठों के आस-पास | लटके होठों के आस-पास | ||
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टट्टुओं की तरह दिखती थी उदास | टट्टुओं की तरह दिखती थी उदास | ||
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तलवों में कीलों की तरह ठुके सारे दुख | तलवों में कीलों की तरह ठुके सारे दुख | ||
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जैसे जोड़-जोड़ को टूटने से बचा रहे हों | जैसे जोड़-जोड़ को टूटने से बचा रहे हों | ||
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उखड़े दाँतों के बिना ठुकी पोपली हँसी | उखड़े दाँतों के बिना ठुकी पोपली हँसी | ||
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ठक-ठकाया एक-एक तन्तु | ठक-ठकाया एक-एक तन्तु | ||
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जन्तु के सिर पर जैसे | जन्तु के सिर पर जैसे | ||
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बिन बाए झौव्वा भर बाल | बिन बाए झौव्वा भर बाल | ||
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दूसरे का काम बनाने के काम में | दूसरे का काम बनाने के काम में | ||
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जितनी बार भी गिरी | जितनी बार भी गिरी | ||
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खड़ी हो जा पड़ी किसी दूसरे के लिए | खड़ी हो जा पड़ी किसी दूसरे के लिए | ||
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अपना आराम कभी नहीं किया अपने शरीर में | अपना आराम कभी नहीं किया अपने शरीर में | ||
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दाम भी जो आया कई हिस्सों में बँटा | दाम भी जो आया कई हिस्सों में बँटा | ||
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बहुतों को वह दूर से | बहुतों को वह दूर से | ||
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दुर्भाग्य की तरह मज़बूत दिखती थी | दुर्भाग्य की तरह मज़बूत दिखती थी | ||
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ख़ुशी कोई दूर-दूर तक नहीं थी | ख़ुशी कोई दूर-दूर तक नहीं थी | ||
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सौभाग्य की तरह | सौभाग्य की तरह | ||
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कोई कुछ कहे, सब कर दे | कोई कुछ कहे, सब कर दे | ||
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कोई कुछ दे-दे, बस ले-ले | कोई कुछ दे-दे, बस ले-ले | ||
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चेहरे किसी के उसे याद न थे | चेहरे किसी के उसे याद न थे | ||
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दीवार पर सोती थी | दीवार पर सोती थी | ||
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बारिश में खड़े खच्चर की तरह | बारिश में खड़े खच्चर की तरह | ||
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ऐसी थकी पगली औरत की भी कमाई | ऐसी थकी पगली औरत की भी कमाई | ||
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ठग-जवांई ले जाते थे | ठग-जवांई ले जाते थे | ||
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धूपबत्तियों से घिरे | धूपबत्तियों से घिरे | ||
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चबूतरे वाले भगवान को देखकर | चबूतरे वाले भगवान को देखकर | ||
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किसी मुर्दे की याद आती थी | किसी मुर्दे की याद आती थी | ||
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सदी बदल रही थी | सदी बदल रही थी | ||
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सड़क किनारे उसे लिटा दिया गया था | सड़क किनारे उसे लिटा दिया गया था | ||
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अकड़ी पड़ी थी | अकड़ी पड़ी थी | ||
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जैसे लेटे में भी खड़ी हो | जैसे लेटे में भी खड़ी हो | ||
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उस पर कुछ रुपए फिंके हुए थे अंत में | उस पर कुछ रुपए फिंके हुए थे अंत में | ||
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कुछ जवान वेश्याओं ने चढाए थे | कुछ जवान वेश्याओं ने चढाए थे | ||
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कुछ कोठा चढते-उतरते लोगों ने | कुछ कोठा चढते-उतरते लोगों ने | ||
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एक बूढा कहीं से आकर | एक बूढा कहीं से आकर | ||
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उसे अपनी बीवी की लाश बता रहा था | उसे अपनी बीवी की लाश बता रहा था | ||
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एक लावारिस की मौत से | एक लावारिस की मौत से | ||
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दूसरा कुछ कमाना चाहता था | दूसरा कुछ कमाना चाहता था | ||
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मेहनत की मौत की तरह | मेहनत की मौत की तरह | ||
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एक स्त्री मरी पड़ी थी | एक स्त्री मरी पड़ी थी | ||
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कल-पुर्जों की तरह | कल-पुर्जों की तरह | ||
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थकी टांगें, थके हाथ | थकी टांगें, थके हाथ | ||
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उसके साथ अब भी दिखते थे | उसके साथ अब भी दिखते थे | ||
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बीच ट्रैफ़िक | बीच ट्रैफ़िक | ||
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भावुकता का धंधा करने वाला | भावुकता का धंधा करने वाला | ||
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अथक पुरुष विलाप जीवित था | अथक पुरुष विलाप जीवित था | ||
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लगता है दो दिन लाश यहाँ से हटेगी नहीं। | लगता है दो दिन लाश यहाँ से हटेगी नहीं। | ||
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02:04, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
कल-पुर्जों की तरह थकी टांगें, थके हाथ
उसके साथ
जब जीवित थी
लग्गियों की तरह लंबी टांगें
जूतों की तरह घिसे पैर
लटके होठों के आस-पास
टट्टुओं की तरह दिखती थी उदास
तलवों में कीलों की तरह ठुके सारे दुख
जैसे जोड़-जोड़ को टूटने से बचा रहे हों
उखड़े दाँतों के बिना ठुकी पोपली हँसी
ठक-ठकाया एक-एक तन्तु
जन्तु के सिर पर जैसे
बिन बाए झौव्वा भर बाल
दूसरे का काम बनाने के काम में
जितनी बार भी गिरी
खड़ी हो जा पड़ी किसी दूसरे के लिए
अपना आराम कभी नहीं किया अपने शरीर में
दाम भी जो आया कई हिस्सों में बँटा
बहुतों को वह दूर से
दुर्भाग्य की तरह मज़बूत दिखती थी
ख़ुशी कोई दूर-दूर तक नहीं थी
सौभाग्य की तरह
कोई कुछ कहे, सब कर दे
कोई कुछ दे-दे, बस ले-ले
चेहरे किसी के उसे याद न थे
दीवार पर सोती थी
बारिश में खड़े खच्चर की तरह
ऐसी थकी पगली औरत की भी कमाई
ठग-जवांई ले जाते थे
धूपबत्तियों से घिरे
चबूतरे वाले भगवान को देखकर
किसी मुर्दे की याद आती थी
सदी बदल रही थी
सड़क किनारे उसे लिटा दिया गया था
अकड़ी पड़ी थी
जैसे लेटे में भी खड़ी हो
उस पर कुछ रुपए फिंके हुए थे अंत में
कुछ जवान वेश्याओं ने चढाए थे
कुछ कोठा चढते-उतरते लोगों ने
एक बूढा कहीं से आकर
उसे अपनी बीवी की लाश बता रहा था
एक लावारिस की मौत से
दूसरा कुछ कमाना चाहता था
मेहनत की मौत की तरह
एक स्त्री मरी पड़ी थी
कल-पुर्जों की तरह
थकी टांगें, थके हाथ
उसके साथ अब भी दिखते थे
बीच ट्रैफ़िक
भावुकता का धंधा करने वाला
अथक पुरुष विलाप जीवित था
लगता है दो दिन लाश यहाँ से हटेगी नहीं।