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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
देवलोक से मिट्टी लाकर
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!
देवलोक से मिट्टी लाकर <br>मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!<br>रचना रचता मुख जिससे निकली हो,<br>वेद-उपनिषद् उपनिषद की वर वाणी, <br>काव्य-माधुरी, राग-रागिनी <br>जग-जीवन के हित कल्याणी, <br>हिंस्र जंतु जन्तु के दाढ़ युक्त <br>जबड़े-सा पर वह मुख बन जाता! <br>देवलोक से मिट्टी लाकर <br>मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! <br><br>
रचता कर जो भूमि जोतकर <br>बोएँ, श्यामल शस्य उगाएँ, <br>अमित कला-कौशल की निधियाँ <br>संचित कर सुख-शांति शान्ति बढ़ाएँ, <br>हिंस्र जंतु हिस्र जन्तु के नख से संयुत <br>पंजे-सा वह कर बन जाता! <br>देवलोक से मिट्टी लाकर <br>मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!<br><br>
दो पाँवों पर उसे खड़ा कर <br>खड़ाकरबाँहों बाहों को ऊपर उठवाता, <br>स्वर्ग लोक को छू लेने का <br>मानो हो वह ध्येय बनाता, <br>हाथ टेक धरती के ऊपर <br>हाय, नराधम पशु बन जाता! <br>देवलोक से मिट्टी लाकर।।लाकरमैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!</poem>
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