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कोजागर
 
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(उगते से) इंदु का आकासदीप-दोल चढ़ा जा रहा ।
  
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गोरोचनी जोन्ह पिघली-सी
 
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बालुका का तट, आह, चन्द्रकान्तमणि-सा पसीज-सा रहा ।
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बालुका का तट, आह, चन्द्रकान्तमणि सा पसीज-सा रहा।
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मौन अलगाव के प्रथम का बढ़ा आ रहा ।
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टूटता, अकास में, कपास-मेघ जा रहा ।
  
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किन्तु मूढ़ हियरा, तुझे क्या हुआ जा रहा ।
 
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किंतु मूढ़ हियरा, तुझे क्या हुआ जा रहा।
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14:07, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

कोजागर
दीठियों की डोर-खिंचा
(उगते से) इंदु का आकासदीप-दोल चढ़ा जा रहा ।

गोरोचनी जोन्ह पिघली-सी
बालुका का तट, आह, चन्द्रकान्तमणि-सा पसीज-सा रहा ।

साथ हम
नख से विलेखते अदेखते से
मौन अलगाव के प्रथम का बढ़ा आ रहा ।

अरथ-उदास लोचनों में नदी का उजास
टूटता, अकास में, कपास-मेघ जा रहा ।

नीर हटता-सा
क्लिन्न तीर फटता-सा गिरा
किन्तु मूढ़ हियरा, तुझे क्या हुआ जा रहा ।