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"गीत / व्यथित" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा
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|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव
 
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13:52, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

बरसि गेलै बदरा मोरे अंगना
कि बनी गेलै अंगना गंगा-जमुना।

रसें-रसें बरसै रसलॅ बुन्दरिया,
तीती गेलै लॅत-गात भिजलै चुनरिया,
बिसरि गेलै सुरता उगलै सपना।

रोपलॅ जुआय गेलै नेनुआ अँचरबा,
रही-रही बिरथा फड़कै अँचरबा
अटकि गेलै कहवाँ पापी नैना।

बिजली चमकि गेलै भागो चमकलै,
आहट सुनथैं चेहरा दमकलै,
उमगि गेलै सजनी उमगि गेलै सजना।