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"दाग / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

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चांद पर उभरते दाग पर
 
चांद पर उभरते दाग पर

18:34, 26 अगस्त 2017 का अवतरण

चांद पर उभरते दाग पर
सुने होंगे...बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी
बहुत सी उपमाएं साहित्यकारों की
लेकिन कहा एक लड़की ने...
वो गढ्ढे बने हैं मेरे आंसूओं से
वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की
घना जंगल है ख़ामोशी का
उन चुप्पा लड़कियों की
जो रात भर बतियाती हैं चांद से
ये जो चांदनी बरसती है...धरा के आंगन...
जल जाते हैं उगे हुए जंगल
जब गूंजता है समवेत क्रंदन...चांद के कानों में
एक ठहरी हुई नदी का...
निकल आता है अकबका कर बाहर चांद
डूब जाती है धरती...फट जाता है रंग
शोकमग्न चांद का
नीली चांदनी का उजला होना
नहीं समझेंगे लोग
नहीं समझेंगे...डूब जाने का मतलब
कि जल जाने का मतलब
सिर्फ जिस्म के दाग नहीं होते।