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"महाकाव्य / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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सब शाश्वत चिरंतन है | सब शाश्वत चिरंतन है | ||
नश्वरता में समाहित है | नश्वरता में समाहित है | ||
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महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे। | महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे। | ||
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19:04, 20 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
एक सवाल है-
क्या तुम ज़िन्दा हो!
रुको पलट कर मत देखो
डायरी के पन्ने
साँसों की गिनतियाँ
कोई नही लिखता
अतीत की घुमावदार पगडंडियाँ
भविष्य के किसी शहर नहीं जाती
वर्तमान एक अख़बार है
सुबह का
जिसमें दर्ज पल-पल की खबर
बासी पड़ती जाती है आने वाले घंटों में
तुम्हारी प्रतीक्षा
एक प्रतिप्रश्न है प्रश्न से
उत्तर लम्बी यात्रा पर है
समय की वीथियों में
तुम भ्रमित हो
सब शाश्वत चिरंतन है
नश्वरता में समाहित है
नवीन रचनाओं का उत्स
महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे।