"जंगल / लवली गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बेतरतीब टहनियों के बीच लटके मकड़ियों के उलझे जाल | |
− | + | आकाश की फुसफुसाहट है जंगल के कानों में | |
− | + | धरती पर बिखरी पेड़ों की उथली उलझी जड़ें | |
− | + | उन फुसफुसाहटों के ठोस जवाब में लगते धरती के कहकहे हैं | |
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− | + | आकाश की फुसफुसाहटों में न उलझकर | |
− | + | चालाक मकड़ियाँ उस पर कुनबा संजोती हैं | |
− | + | जो तितलियाँ दूर तक उड़ने के उत्साह में | |
− | + | नज़दीक़ लटके जाले नहीं देख पाती | |
− | + | वे पंखों से चिपक जाने वाली | |
− | + | लिसलिसी कानाफूसियों से हारकर मर जाती हैं | |
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− | + | धरती की हँसी को नियामत समझकर | |
− | + | विनम्र छोटे कीट वहाँ अपनी विरासत बोते हैं | |
− | + | लेकिन उन अड़ियल बारासिंघों को सींग फँसा कर मरना पड़ता हैं | |
− | + | जो हँसी के ढाँचे को अनदेखा करते हैं | |
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− | + | स्मृतियों से हम उतने ही परिचित होते हैं | |
− | + | जितना अपने सबसे गहरे प्रेम की अनुभूतियों से | |
− | + | पौधे धूप देखकर अपनी शाखाओं की दिशा तय कर लेते हैं | |
− | + | प्रेम के समर्थन के लिए सुदूर अतीत में कहीं स्मृतियाँ | |
− | + | अपनी तहों में वाज़िब हेर-फेर कर लेती हैं | |
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− | + | हम प्रेम करते हैं या स्मृतियाँ बनाते हैं | |
− | + | यह बड़ा उलझा सवाल है | |
− | + | तभी तो हम केवल उनसे प्रेम करते हैं | |
− | + | जिनकी स्मृतियाँ हमारे पास पहले से होती हैं | |
− | + | या जिनके साथ हम आसानी से स्मृतियाँ बना सकें | |
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− | + | जाता हुआ सूरज सब कलरवों की पीठ पर छुरा घोंप जाता है | |
− | + | गोधूलि की बेला आसमान में बिखरा दिवस का रक्त अगर शाम है | |
− | + | तो रौशनी की मूर्च्छा को लोग रात कहते हैं | |
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− | + | जब वह उनींदी लाल आँखें खोलता मैं उसे सुबह कहती थी | |
− | + | जब अनमनापन उसकी गहरी काली आँखों के तले से | |
− | + | नक्षत्र भरे आकाश तक फैलता मेरी रात होती थी | |
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− | + | टहनियों के बीच टंगे मकड़ियों के जालों के | |
− | + | बीच की खाली जगह से जंगल की आँखें मुझे घूरती हैं | |
− | + | मेरे कन्धों के रोम किसी अशरीरी की उपस्थिति से | |
− | + | चिहुँककर बार-बार पीछे देखते हैं | |
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− | + | उन्हें शांत रहने को कहती मैं खुद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखती | |
− | + | ऐसे मुझे हमेशा यह लगता रहता है कि वह मुझसे कुछ ही दूर | |
+ | बस वहीं खड़ा है जहाँ मैंने अंतिम दफ़ा उसे विदा कहा था | ||
− | + | प्रेम में उसका मेरे पास न होना | |
+ | कभी उसकी उपस्थिति का विलोम नहीं हो पाया | ||
+ | मुझे लौटते देखती उसकी नज़र को | ||
+ | मैं अब भी आँचल और केशों के साथ कन्धों से लिपटा पाती हूँ | ||
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− | + | हरे लहलहाते जंगलों में लाल-भूरी धरती फोड़कर | |
− | + | उग आये सफ़ेद बूटे जैसे मशरूम | |
− | + | मकड़ी के सघन जालों के बीच की खाली जगह से गिर गए जंगल के नेत्र गोलक है | |
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− | मैं | + | जंगल हमेशा मुझे अविश्वास से देखता है |
− | + | जैसे वह मेरा छूट गया आदिम प्रेमी है | |
+ | जो अधिकार न रखते हुए भी यह ज़रूर जानना चाहता है | ||
+ | कि इन दिनों मैं क्या कर रही हूँ | ||
− | + | अविश्वासों के जंगल में मैंने उसे हमेशा | |
− | + | लौट आने के भरोसे के साथ खोया था | |
− | + | वह मेरे पास से हमेशा न लौटने के भरोसे के साथ गया | |
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+ | (6) | ||
− | + | मेघों की साज़िश भरी गुफ्तगू को बारिश कहेंगे | |
− | + | तो सब दामिनीयों को आकाश में चिपकी जोंक मान लेना पड़ेगा | |
− | + | उन्होंने सूरज का खून चूसा तभी तो उनमें प्रकाश है | |
− | + | आसमान के सब चमकीले सूरजों को चाहिए कि वे स्याह ईर्ष्यालु मेघों से बच कर चलें | |
− | + | मेघों के पास सूरज की रौशनी चूस कर चमकने वाली जोंकों की फ़ौज होती है | |
− | + | जो उनका साथ देने को रह-रह कर अपनी नुकीली धारदार हँसी माँजती है | |
− | + | ||
− | + | कुछ लोग दामिनीयों जैसे चमकते हुए उत्साह से तुम्हारे जीवन में आएंगे | |
− | + | स्याह मेघों की फ़ौज के हरकारे बनकर | |
− | + | तुम दिखावटी चमक के इन शातिर नुमाइंदों से बचना | |
− | + | ये थोड़े समय तक झूठे उत्साह के भुलावे देकर | |
− | + | तुम्हारे भीतर की सब रौशनी चूस लेंगे । | |
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13:36, 4 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
बेतरतीब टहनियों के बीच लटके मकड़ियों के उलझे जाल
आकाश की फुसफुसाहट है जंगल के कानों में
धरती पर बिखरी पेड़ों की उथली उलझी जड़ें
उन फुसफुसाहटों के ठोस जवाब में लगते धरती के कहकहे हैं
आकाश की फुसफुसाहटों में न उलझकर
चालाक मकड़ियाँ उस पर कुनबा संजोती हैं
जो तितलियाँ दूर तक उड़ने के उत्साह में
नज़दीक़ लटके जाले नहीं देख पाती
वे पंखों से चिपक जाने वाली
लिसलिसी कानाफूसियों से हारकर मर जाती हैं
धरती की हँसी को नियामत समझकर
विनम्र छोटे कीट वहाँ अपनी विरासत बोते हैं
लेकिन उन अड़ियल बारासिंघों को सींग फँसा कर मरना पड़ता हैं
जो हँसी के ढाँचे को अनदेखा करते हैं
(2)
स्मृतियों से हम उतने ही परिचित होते हैं
जितना अपने सबसे गहरे प्रेम की अनुभूतियों से
पौधे धूप देखकर अपनी शाखाओं की दिशा तय कर लेते हैं
प्रेम के समर्थन के लिए सुदूर अतीत में कहीं स्मृतियाँ
अपनी तहों में वाज़िब हेर-फेर कर लेती हैं
हम प्रेम करते हैं या स्मृतियाँ बनाते हैं
यह बड़ा उलझा सवाल है
तभी तो हम केवल उनसे प्रेम करते हैं
जिनकी स्मृतियाँ हमारे पास पहले से होती हैं
या जिनके साथ हम आसानी से स्मृतियाँ बना सकें
(3)
जाता हुआ सूरज सब कलरवों की पीठ पर छुरा घोंप जाता है
गोधूलि की बेला आसमान में बिखरा दिवस का रक्त अगर शाम है
तो रौशनी की मूर्च्छा को लोग रात कहते हैं
जब वह उनींदी लाल आँखें खोलता मैं उसे सुबह कहती थी
जब अनमनापन उसकी गहरी काली आँखों के तले से
नक्षत्र भरे आकाश तक फैलता मेरी रात होती थी
(4)
टहनियों के बीच टंगे मकड़ियों के जालों के
बीच की खाली जगह से जंगल की आँखें मुझे घूरती हैं
मेरे कन्धों के रोम किसी अशरीरी की उपस्थिति से
चिहुँककर बार-बार पीछे देखते हैं
उन्हें शांत रहने को कहती मैं खुद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखती
ऐसे मुझे हमेशा यह लगता रहता है कि वह मुझसे कुछ ही दूर
बस वहीं खड़ा है जहाँ मैंने अंतिम दफ़ा उसे विदा कहा था
प्रेम में उसका मेरे पास न होना
कभी उसकी उपस्थिति का विलोम नहीं हो पाया
मुझे लौटते देखती उसकी नज़र को
मैं अब भी आँचल और केशों के साथ कन्धों से लिपटा पाती हूँ
(5)
हरे लहलहाते जंगलों में लाल-भूरी धरती फोड़कर
उग आये सफ़ेद बूटे जैसे मशरूम
मकड़ी के सघन जालों के बीच की खाली जगह से गिर गए जंगल के नेत्र गोलक है
जंगल हमेशा मुझे अविश्वास से देखता है
जैसे वह मेरा छूट गया आदिम प्रेमी है
जो अधिकार न रखते हुए भी यह ज़रूर जानना चाहता है
कि इन दिनों मैं क्या कर रही हूँ
अविश्वासों के जंगल में मैंने उसे हमेशा
लौट आने के भरोसे के साथ खोया था
वह मेरे पास से हमेशा न लौटने के भरोसे के साथ गया
(6)
मेघों की साज़िश भरी गुफ्तगू को बारिश कहेंगे
तो सब दामिनीयों को आकाश में चिपकी जोंक मान लेना पड़ेगा
उन्होंने सूरज का खून चूसा तभी तो उनमें प्रकाश है
आसमान के सब चमकीले सूरजों को चाहिए कि वे स्याह ईर्ष्यालु मेघों से बच कर चलें
मेघों के पास सूरज की रौशनी चूस कर चमकने वाली जोंकों की फ़ौज होती है
जो उनका साथ देने को रह-रह कर अपनी नुकीली धारदार हँसी माँजती है
कुछ लोग दामिनीयों जैसे चमकते हुए उत्साह से तुम्हारे जीवन में आएंगे
स्याह मेघों की फ़ौज के हरकारे बनकर
तुम दिखावटी चमक के इन शातिर नुमाइंदों से बचना
ये थोड़े समय तक झूठे उत्साह के भुलावे देकर
तुम्हारे भीतर की सब रौशनी चूस लेंगे ।