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"खूंटियों पर टांगते हम / कल्पना 'मनोरमा'" के अवतरणों में अंतर
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खूंटियों पर टांगते हम | खूंटियों पर टांगते हम | ||
− | बेहिचक | + | बेहिचक अपनी उदासी। |
− | मौन दरवाजे | + | मौन दरवाजे संजोती |
भोर से करतीं प्रतीक्षा | भोर से करतीं प्रतीक्षा | ||
स्वेदकण भी साँझ ढलते | स्वेदकण भी साँझ ढलते | ||
बाँचने लगते समीक्षा | बाँचने लगते समीक्षा | ||
− | सिर झुकाए सूना | + | सिर झुकाए सूना करती |
जिन्दगी की उलटवासी। | जिन्दगी की उलटवासी। | ||
− | + | सोचती रहती न कहती | |
अनमने मन की व्यथा को | अनमने मन की व्यथा को | ||
− | पीढ़ियों से सुन | + | पीढ़ियों से सुन रही हैं |
− | अनकही धूसर कथा को | + | अनकही धूसर कथा को । |
जब अबोलापन सताता | जब अबोलापन सताता | ||
− | क्लांत मन | + | क्लांत मन भरती उवासी। |
− | + | रात भर करती छिपाकर | |
हर थकन की मेजबानी | हर थकन की मेजबानी | ||
− | + | सोखती परिधान से वे | |
उलझनों की तर्जुमानी | उलझनों की तर्जुमानी | ||
− | बोझ | + | बोझ ढोती ख्वाहिशों का |
− | माँगतीं | + | माँगतीं दिखती दुआ सी। |
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18:01, 24 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
खूंटियों पर टांगते हम
बेहिचक अपनी उदासी।
मौन दरवाजे संजोती
भोर से करतीं प्रतीक्षा
स्वेदकण भी साँझ ढलते
बाँचने लगते समीक्षा
सिर झुकाए सूना करती
जिन्दगी की उलटवासी।
सोचती रहती न कहती
अनमने मन की व्यथा को
पीढ़ियों से सुन रही हैं
अनकही धूसर कथा को ।
जब अबोलापन सताता
क्लांत मन भरती उवासी।
रात भर करती छिपाकर
हर थकन की मेजबानी
सोखती परिधान से वे
उलझनों की तर्जुमानी
बोझ ढोती ख्वाहिशों का
माँगतीं दिखती दुआ सी।