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"ब्रह्मपिशाच / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

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एक खारे जल के पहाड़ ने  
 
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लील लिया  
 
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वह निस्पंद महानगर  
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कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र  
 
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स्याह पंखों में बदल गए  
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सभी मेजो के कागज़ात औए दस्तावेज़  
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सोये बच्चों के सिरहाने  
 
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पतंग या वसीयत बन कर रखे गए  
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नारे और गुल और परचे  
 
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नहान घर में बह गए  
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वायलिने छिपकिली की लाश बनकर  
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पहाड़ में चस्पां हो गयी  
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वायलिनें छिपकिली की लाश बनकर  
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पहाड़ में चस्पां हो गयी
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मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी  
 
मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी  
 
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच  
 
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच  

20:18, 17 अक्टूबर 2017 का अवतरण

एक खारे जल के पहाड़ ने
लील लिया
वह निस्पंद महानगर

कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र
स्याह पंखों में बदल गए

सभी मेज़ों के कागज़ात औए दस्तावेज़
सोये बच्चों के सिरहाने

पतंग या वसीयत बन कर रखे गए
नारे और गुल और परचे
नहान घर में बह गए

वायलिनें छिपकिली की लाश बनकर
पहाड़ में चस्पां हो गयी

मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच
अपनी खड़ाऊ की मग पर दृष्टि गड़ाए
गुम-सुम !