भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मदमस्त पवन / राजीव रंजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पिघल रहा इंसान / राजीव रंजन |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
भांग सा हर मन में उमंग घोल रहा। | भांग सा हर मन में उमंग घोल रहा। | ||
बहारों में खिले सौदर्यं का घूँघट खोल रहा। | बहारों में खिले सौदर्यं का घूँघट खोल रहा। | ||
− | मधुमीत मदन सा प्यार की | + | मधुमीत मदन सा प्यार की भाषा बोल रहा। |
हिम-सिक्त शिखर पर चढ़ कभी ठंडी आहें भर रहा। | हिम-सिक्त शिखर पर चढ़ कभी ठंडी आहें भर रहा। | ||
− | कभी | + | कभी पुष्प-रज उड़ा तितलियों की साँसें गर्म कर रहा। |
मदमस्त पवन आज गीत बन हर मन से झर रहा। | मदमस्त पवन आज गीत बन हर मन से झर रहा। | ||
</poem> | </poem> |
10:01, 11 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
बागों में कलियों को वह चूम रहा।
उन्मुक्त पवन गुलशन में यूँ घूम रहा।
जैसे राह में मदिरा पी कोई झूम रहा।
बागों में फूलों का यौवन बन फूल रहा।
कभी पत्तों संग डालियों पर झूल रहा।
लहलहाते खेतों में जा अपने को भूल रहा।
भांग सा हर मन में उमंग घोल रहा।
बहारों में खिले सौदर्यं का घूँघट खोल रहा।
मधुमीत मदन सा प्यार की भाषा बोल रहा।
हिम-सिक्त शिखर पर चढ़ कभी ठंडी आहें भर रहा।
कभी पुष्प-रज उड़ा तितलियों की साँसें गर्म कर रहा।
मदमस्त पवन आज गीत बन हर मन से झर रहा।