भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फेरु / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह = तुम्हे सौंपता हूँ / त्रिलोचन | |संग्रह = तुम्हे सौंपता हूँ / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
− | फ़ेरु अमरेथू रहता है | + | फ़ेरु अमरेथू रहता है<br> |
− | वह कहार है | + | वह कहार है<br><br> |
− | काकवर्ण है | + | काकवर्ण है<br> |
− | सृष्टि वृक्ष का | + | सृष्टि वृक्ष का <br> |
− | एक पर्ण है | + | एक पर्ण है<br><br> |
− | मन का मौजी | + | मन का मौजी<br> |
− | और निरंकुश | + | और निरंकुश<br> |
− | राग रंग में ही रहता है | + | राग रंग में ही रहता है<br><br> |
− | उसकी सारी आकान्क्षाएं - अभिलाषाएं | + | उसकी सारी आकान्क्षाएं - अभिलाषाएं<br> |
− | बहिर्मुखी हैं | + | बहिर्मुखी हैं<br> |
− | इसलिए तो | + | इसलिए तो<br> |
− | कुछ दिन बीते | + | कुछ दिन बीते<br> |
− | अपनी ही ठकुराइन को ले | + | अपनी ही ठकुराइन को ले<br> |
− | वह कलकत्ते चला गया था | + | वह कलकत्ते चला गया था<br> |
− | जब से लौटा है | + | जब से लौटा है<br> |
− | उदास ही अब रहता है। | + | उदास ही अब रहता है। <br><br> |
− | ठकुराइन तो बरस बिताकर | + | ठकुराइन तो बरस बिताकर<br> |
− | वापस आई | + | वापस आई<br> |
− | कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है | + | कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है<br> |
− | काशी बड़ी भली नगरी है | + | काशी बड़ी भली नगरी है<br> |
− | वहां पवित्र लोग रहते हैं | + | वहां पवित्र लोग रहते हैं<br><br> |
फेरू भी सुनता रहता है। | फेरू भी सुनता रहता है। |
09:22, 23 जून 2008 का अवतरण
फ़ेरु अमरेथू रहता है
वह कहार है
काकवर्ण है
सृष्टि वृक्ष का
एक पर्ण है
मन का मौजी
और निरंकुश
राग रंग में ही रहता है
उसकी सारी आकान्क्षाएं - अभिलाषाएं
बहिर्मुखी हैं
इसलिए तो
कुछ दिन बीते
अपनी ही ठकुराइन को ले
वह कलकत्ते चला गया था
जब से लौटा है
उदास ही अब रहता है।
ठकुराइन तो बरस बिताकर
वापस आई
कहा उन्होंने मैंने काशीवास किया है
काशी बड़ी भली नगरी है
वहां पवित्र लोग रहते हैं
फेरू भी सुनता रहता है।