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मैं तुममें घटकर बढ़ता हूँ / नीलोत्पल
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11:37, 25 नवम्बर 2017
बैठी है ललचाती हुई
तुम्हारे
मुंख
मुख
से बरस पड़ने को।
</poem>
अनिल जनविजय
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