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हैबत के ऐसे दौर से गुज़र है कि | हैबत के ऐसे दौर से गुज़र है कि | ||
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रोज़ अख़बार मैं उलटी तरफ़ से शुरू करता हूं | रोज़ अख़बार मैं उलटी तरफ़ से शुरू करता हूं | ||
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जैसे यह हिन्दी का नहीं उर्दू का अख़बार हो | जैसे यह हिन्दी का नहीं उर्दू का अख़बार हो | ||
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खेल समाचारों और वर्ग पहेलियों के पर्दों से | खेल समाचारों और वर्ग पहेलियों के पर्दों से | ||
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झांकते और जज़्ब हो जाते हैं | झांकते और जज़्ब हो जाते हैं | ||
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बुरे अन्देशे | बुरे अन्देशे | ||
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व्यापार और फ़ैशन के पृष्ठों पर डोलती दिखती है | व्यापार और फ़ैशन के पृष्ठों पर डोलती दिखती है | ||
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ख़तरे की झांईं | ख़तरे की झांईं | ||
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इसी तरह बढ़ता हुआ खोलता हूं | इसी तरह बढ़ता हुआ खोलता हूं | ||
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बीच के सफ़े, सम्पादकीय पृष्ठ | बीच के सफ़े, सम्पादकीय पृष्ठ | ||
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देखूं वो लोग क्या चाहते हैं | देखूं वो लोग क्या चाहते हैं | ||
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पलटता हूं एक और सफ़ा | पलटता हूं एक और सफ़ा | ||
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प्रादेशिक समाचारों से भांप लेता हूं | प्रादेशिक समाचारों से भांप लेता हूं | ||
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राष्ट्रीय समाचार | राष्ट्रीय समाचार | ||
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ग़र्ज़ ये कि शाम हो जाती है बाज़ औक़ात | ग़र्ज़ ये कि शाम हो जाती है बाज़ औक़ात | ||
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अख़बार का पहला पन्ना देखे बिना. | अख़बार का पहला पन्ना देखे बिना. | ||
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19:19, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हैबत के ऐसे दौर से गुज़र है कि
रोज़ अख़बार मैं उलटी तरफ़ से शुरू करता हूं
जैसे यह हिन्दी का नहीं उर्दू का अख़बार हो
खेल समाचारों और वर्ग पहेलियों के पर्दों से
झांकते और जज़्ब हो जाते हैं
बुरे अन्देशे
व्यापार और फ़ैशन के पृष्ठों पर डोलती दिखती है
ख़तरे की झांईं
इसी तरह बढ़ता हुआ खोलता हूं
बीच के सफ़े, सम्पादकीय पृष्ठ
देखूं वो लोग क्या चाहते हैं
पलटता हूं एक और सफ़ा
प्रादेशिक समाचारों से भांप लेता हूं
राष्ट्रीय समाचार
ग़र्ज़ ये कि शाम हो जाती है बाज़ औक़ात
अख़बार का पहला पन्ना देखे बिना.