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"गुलमोहर की छाँव में / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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वह बैठी रहती थी, हर साँझ,
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तकती बाट प्रियतम की , चुपचाप
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वह बैठी रहती थी, हर साँझ,<br>
गुलमोहर की छाँव मेँ !
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तकती बाट प्रियतम की , चुपचाप<br>
जेठ की तपती धूप सिमट जाती थी,
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गुलमोहर की छाँव मेँ !<br>
उसके मेँहदी वाले पैँरोँ पर
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जेठ की तपती धूप सिमट जाती थी,<br>
बिछुए के नीले नँग से, खेला करती थी
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उसके मेँहदी वाले पैँरोँ पर<br>
पल पल फिर, झिडक देती ...
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बिछुए के नीले नँग से, खेला करती थी<br>
झाँझर की जोडी को..
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पल पल फिर, झिडक देती ...<br>
अपनी नर्म अँगुलीयोँ से.....
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कुछ बरस पहले यही पेड हरा भरा था,
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नया नया था !
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कुछ बरस पहले यही पेड हरा भरा था,<br>
ना जाने कौन कर गया
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उस पर, इतनी चित्रकारी ?
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ना जाने कौन कर गया<br>
कौन दे गया लाल रँग ?
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उस पर, इतनी चित्रकारी ?<br>
खिल उठे हजारोँ गुलमोहर
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कौन दे गया लाल रँग ?<br>
पेड मुस्कुराने लगा
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खिल उठे हजारोँ गुलमोहर<br>
और एक गीत , गुनगुनाने लगा
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पेड मुस्कुराने लगा<br>
नाच उठे मोरोँ के जोड
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और एक गीत , गुनगुनाने लगा<br>
उठाये नीली ग्रीवा थिरक रहे माटी पर
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नाच उठे मोरोँ के जोड<br>
शान पँखोँ पे फैलाये !
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उठाये नीली ग्रीवा थिरक रहे माटी पर<br>
शहेरोँ की बस्ती मेँ "गुलमोहर एन्क्लेव " ..
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शान पँखोँ पे फैलाये !<br>
पथ के दोनो ओर घने लदे हुए ,
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शहेरोँ की बस्ती मेँ "गुलमोहर एन्क्लेव " ..<br>
कई सारे पेड -
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पथ के दोनो ओर घने लदे हुए ,<br>
नीली युनिफोर्म मेँ सजे, स्कूल बस के इँतजार मेँ
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कई सारे पेड -<br>
शिस्त बध्ध, बस्ता लादे,
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नीली युनिफोर्म मेँ सजे, स्कूल बस के इँतजार मेँ<br>
मौन खडे........बालक !
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शिस्त बध्ध, बस्ता लादे,<br>
..........सभ्य तो हैँ !!
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मौन खडे........बालक !<br>
पर, गुलमोहर के सौँदर्य से
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..........सभ्य तो हैँ !!<br>
अनभिज्ञ से हैँ ...!!
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पर, गुलमोहर के सौँदर्य से<br>
--लावण्या
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अनभिज्ञ से हैँ ...!!<br>

23:49, 28 जून 2008 का अवतरण


वह बैठी रहती थी, हर साँझ,
तकती बाट प्रियतम की , चुपचाप
गुलमोहर की छाँव मेँ !
जेठ की तपती धूप सिमट जाती थी,
उसके मेँहदी वाले पैँरोँ पर
बिछुए के नीले नँग से, खेला करती थी
पल पल फिर, झिडक देती ...
झाँझर की जोडी को..
अपनी नर्म अँगुलीयोँ से.....
कुछ बरस पहले यही पेड हरा भरा था,
नया नया था !
ना जाने कौन कर गया
उस पर, इतनी चित्रकारी ?
कौन दे गया लाल रँग ?
खिल उठे हजारोँ गुलमोहर
पेड मुस्कुराने लगा
और एक गीत , गुनगुनाने लगा
नाच उठे मोरोँ के जोड
उठाये नीली ग्रीवा थिरक रहे माटी पर
शान पँखोँ पे फैलाये !
शहेरोँ की बस्ती मेँ "गुलमोहर एन्क्लेव " ..
पथ के दोनो ओर घने लदे हुए ,
कई सारे पेड -
नीली युनिफोर्म मेँ सजे, स्कूल बस के इँतजार मेँ
शिस्त बध्ध, बस्ता लादे,
मौन खडे........बालक !
..........सभ्य तो हैँ !!
पर, गुलमोहर के सौँदर्य से
अनभिज्ञ से हैँ ...!!