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"पाती एक अजानी / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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मन से मनको लिख रही हूँ,
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पाती एक अजानी प्रियतम !
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तुम भी हामी भरते जाना,  
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फिर कह रही कहानी !
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था राजा या रानी ?
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अब आगे सुनो कहानी !<br><br>
साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"
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छोड गाँव की सीमा को वह,
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भोर भए , उगता जब रवि था,<br>
जँगल पार घनेरे कर के,
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रानी रोज किया करती थी
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किसी तरह पाऊँ मैँ इसको,
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लौट चले सखीयोँ के दल
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मची राजा के दिल मेँ हलचल !
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पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेजकर
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क्या हो, था ही हठी स्वभाव !
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आव न देखा, ताव न देखा,
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राजा ने फिर धावा बोला--
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अब तो रानी का आसन डोला !
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क्या हो, था ही हठी स्वभाव !<br><br>
बँदी बन रानी, तब आईँ
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राजा के सम्मुख गई लाईँ
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कारा गृह मेँ भेज दीया कह,
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"नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !
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एक वर्ष था बीत चला अब
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श्री जग्गनाथ का उत्सव !
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रीत यही थी, एक दिवस को,
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राजा , झाडू देते थे ....
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मँदिर के सेवक होते थे !
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बुढा मँत्री, चतुर सयाना
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एक वर्ष था बीत चला अब <br>
लाया खीँच रानी का बाना कहा,
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" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,
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सेवक राजा की ,सेविका से,
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सेवक राजा की ,सेविका से,<br>
हुई धूमधाम से शादी--
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हुई धूमधाम से शादी--<br>
फिर छमछम बरसा पानी !
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फिर छमछम बरसा पानी !<br>
मीत हृदय के मिले सुखारे  
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मीत हृदय के मिले सुखारे <br>
बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !
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बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !<br>
हा! कैसी अजब कहानी !
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हा! कैसी अजब कहानी !<br><br>
  
जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,
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जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,<br>
पायेँ नैनन की ज्योति,
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पायेँ नैनन की ज्योति,<br>
प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !
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प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !<br>
यहाँ न हार किसी की होती !
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यहाँ न हार किसी की होती !<br><br>
  
अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,
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अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,<br>
कर याद मुझे कभी क्या, वहाँ,
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कर याद मुझे कभी क्या, वहाँ,<br>
हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?
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हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?<br>
 
काश! कि, मैँ वहाँ होती !
 
काश! कि, मैँ वहाँ होती !

00:10, 29 जून 2008 के समय का अवतरण

मन से मनको लिख रही हूँ,
पाती एक अजानी प्रियतम !
पाती मेँ प्रेम - कहानी !

तुम भी हामी भरते जाना,
सुनते सुनते बानी ..
फिर कह रही कहानी !

कहुँ, सुनाऊँ, तुमको प्रियतम,
था राजा या रानी ?
सुनोगे क्या ये कहानी ?

सुनो, एक थी रानी बडी निर्मम !
पर थी वह बडी ही सुँदर !
ज्यूँ बन उपवन की तितली !

गर्वीली, मदमाती, बडी हठीली !
एक था राजा, बडा भोला नादान
रखता सब जीवोँ पर प्रेम समान !
बडा बलशाली, चतुर, सुजान !

सुन रहे हो तो हामी भरना
अब आगे सुनो कहानी !

भोर भए , उगता जब रवि था,
राजा निकल पडता था सुबही को,
साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"
सुनो, सुनो, ये कहानी !

छोड गाँव की सीमा को वह,
जँगल पार घनेरे कर के,
आया, जहाँ रहती थी रानी !
अब आगे सुनो, कहानी ..

रानी रोज किया करती थी
गौरी - व्रत की पूजा,
नियम न था कोई दूजा ~

छिप मँदीर की दीवारोँ से,
देखी राजा ने रानी -
मन करने लगा मनमानी !
किसी तरह पाऊँ मैँ इसको,
हठ राजा ने ये ठानी !
वह भी तो था अभिमानी !

पलक झपकते रानी लौटी,
लौट चले सखीयोँ के दल
मची राजा के दिल मेँ हलचल !
पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेजकर
राजा ने देखा मीठा सपना
दूर नहीँ होँगेँ दिनी ऐसे,
हम जब होँगेँ साजन - सजनी !

रानी ने पर अपमानित करके,
ठुकराया उसका प्रस्ताव !
क्या हो, था ही हठी स्वभाव !

आव न देखा, ताव न देखा,
राजा ने फिर धावा बोला--
अब तो रानी का आसन डोला !
बँदी बन रानी, तब आईँ
राजा के सम्मुख गई लाईँ
कारा गृह मेँ भेज दीया कह,

"नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !
ना होगी मेरी ये, रानी ! "

एक वर्ष था बीत चला अब
आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव !
श्री जग्गनाथ का उत्सव !
रीत यही थी, एक दिवस को,
राजा , झाडू देते थे ....
मँदिर के सेवक होते थे !

बुढा मँत्री, चतुर सयाना
लाया खीँच रानी का बाना कहा,
" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,
- पर मेरी हैँ महारानी ! "
कहो कैसी लगी कहानी ?

सेवक राजा की ,सेविका से,
हुई धूमधाम से शादी--
फिर छमछम बरसा पानी !
मीत हृदय के मिले सुखारे
बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !
हा! कैसी अजब कहानी !

जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,
पायेँ नैनन की ज्योति,
प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !
यहाँ न हार किसी की होती !

अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,
कर याद मुझे कभी क्या, वहाँ,
हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?
काश! कि, मैँ वहाँ होती !