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+ | मिलन के आनन्द से | ||
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+ | माता के गर्भ में | ||
+ | पूरा जीवन कुछ नहीं | ||
+ | कभी न मिलने वाले | ||
+ | आनन्द की खोज के सिवाय। | ||
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+ | '''5-मृगतृष्णा''' | ||
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+ | प्रिय-वियोग के पतझर में- | ||
+ | जीवन-वृक्ष से निरंतर | ||
+ | पत्तों-सी झरती रही | ||
+ | आशा और प्रतीक्षा | ||
+ | प्रेम-वसंत की मृगतृष्णा में। | ||
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+ | '''6-तुम्हारा स्पर्श''' | ||
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+ | विरह के बाद | ||
+ | इतना ही सुखद है | ||
+ | तुम्हारा स्पर्श ! | ||
+ | जैसे- कैदी जेल से छूटकर | ||
+ | वर्षों बाद अपने घर से मिला हो | ||
+ | या फिर कोई रोगी | ||
+ | लम्बी बीमारी के बाद | ||
+ | स्वस्थ होकर घर लौटा हो। | ||
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+ | '''7-तुम आए''' | ||
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+ | तुम आए स्वप्न जैसे | ||
+ | इससे पहले कि यकीं होता | ||
+ | दुनिया की हकीकत ने | ||
+ | नींद से जगा दिया | ||
+ | और मैं कभी तुम्हें खोज रही थी | ||
+ | कभी देख रही थी- दीवारें । | ||
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18:13, 11 फ़रवरी 2018 का अवतरण
1-जिंदगी
जिस शिद्दत से देखते हो
तुम मेरा चेहरा,
काश ! जिंदगी भी
उतनी ही कशिश-भरी होती !
2-आँखें
तुम्हें विदा कहते हुए
मेरी आँखों ने एक चिट्ठी लिखी
तुम्हारी आँखों के नाम,
तुम्हारी आँखों ने पढ़ी;
लेकिन आँसुओं से
उस लिखावट को धोने के बजाय
तुम्हारी आँखों ने
समेट लिया उन सन्देशों को
और जुदाई में आँसुओं से
एक-एक अक्षर पर
लाखों ग्रन्थ लिख डाले।
3-प्रणय -निवेदन
जिस उम्मीद से
किसान देखता है
आकाश की ओर
उसी उम्मीद-सा है, प्रिय!
तुम्हारा प्रणय-निवेदन ।
4-जीवन
मिलन के आनन्द से
प्रारम्भ हुआ जीवन
माता के गर्भ में
पूरा जीवन कुछ नहीं
कभी न मिलने वाले
आनन्द की खोज के सिवाय।
5-मृगतृष्णा
प्रिय-वियोग के पतझर में-
जीवन-वृक्ष से निरंतर
पत्तों-सी झरती रही
आशा और प्रतीक्षा
प्रेम-वसंत की मृगतृष्णा में।
6-तुम्हारा स्पर्श
विरह के बाद
इतना ही सुखद है
तुम्हारा स्पर्श !
जैसे- कैदी जेल से छूटकर
वर्षों बाद अपने घर से मिला हो
या फिर कोई रोगी
लम्बी बीमारी के बाद
स्वस्थ होकर घर लौटा हो।
7-तुम आए
तुम आए स्वप्न जैसे
इससे पहले कि यकीं होता
दुनिया की हकीकत ने
नींद से जगा दिया
और मैं कभी तुम्हें खोज रही थी
कभी देख रही थी- दीवारें ।