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+ | भरके माँग तारों से, | ||
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+ | मखमल बदन | ||
+ | और ... | ||
+ | फूलों में,शूलों में | ||
+ | विचरने का काम ... | ||
+ | मेरे खुदा ! | ||
+ | तू ही बता | ||
+ | क्या होना अंजाम ? | ||
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+ | '''5-फाँस | ||
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+ | बड़ी गहरी .. | ||
+ | चुभी थी कोई फाँस .. | ||
+ | करकती रही ! | ||
+ | और ज़िंदगी .. | ||
+ | अपने वजूद का अहसास लिये | ||
+ | धीरे-धीरे…. | ||
+ | सरकती रही ! | ||
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+ | '''6-बेचैन रात''' | ||
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+ | देखे …. | ||
+ | हवाओं के सितम | ||
+ | और जागती रही | ||
+ | बेचैन रात.... | ||
+ | ख़्वाहिश में , | ||
+ | चैन से सोने की | ||
+ | तेज़ी से .... | ||
+ | भागती रही । | ||
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+ | ''7-मिठास'' | ||
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+ | पड़ा है पर्स | ||
+ | चेन ,बिखरे वस्त्र | ||
+ | और कोई भी | ||
+ | आसपास नहीं | ||
+ | जाने क्यों ... | ||
+ | इस खेत के गन्ने में | ||
+ | ज़रा भी | ||
+ | मिठास नहीं ! | ||
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23:40, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1-अक्स!
अक्स !
यूँ छुप तो जाते हैं
दिल के छाले
जतन से ...
छुपाने से
कैसे रोक पाऊँ मैं
अक्स..
रूह के ज़ख़्मों के
लफ़्ज़ों में उभर आने से !!
2-उम्मीद!
कतरे पंख
और ..लग गए खुद ही
मर्सिया गाने में
ठहरो !
ज़िन्दा हूँ अभी
भरूँगी उड़ान ....
कुछ वक़्त तो लगेगा
नए पंख आने में !!
3- तेरी याद!
एक बदली है
दिल के सहरा को
इस तरह ...
पल-पल परसती है
जिस तरह ...
भरके माँग तारों से,
रात की दुलहिन
रात भर तरसती है !!!
4-तितली
कैसे मन को
सुकूँ ..
कैसे तन को
आराम !
नर्म ,नाज़ुक
मखमल बदन
और ...
फूलों में,शूलों में
विचरने का काम ...
मेरे खुदा !
तू ही बता
क्या होना अंजाम ?
5-फाँस
बड़ी गहरी ..
चुभी थी कोई फाँस ..
करकती रही !
और ज़िंदगी ..
अपने वजूद का अहसास लिये
धीरे-धीरे….
सरकती रही !
6-बेचैन रात
देखे ….
हवाओं के सितम
और जागती रही
बेचैन रात....
ख़्वाहिश में ,
चैन से सोने की
तेज़ी से ....
भागती रही ।
7-मिठास
पड़ा है पर्स
चेन ,बिखरे वस्त्र
और कोई भी
आसपास नहीं
जाने क्यों ...
इस खेत के गन्ने में
ज़रा भी
मिठास नहीं !