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"आस्माँ जैसी हवाएँ / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारे किनारे शरद के हैं
 
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और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो
 
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तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है
 
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और हवाएँ
 
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जो कई देशों को पार करती हुई
 
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तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं
 
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आसमान जैसी
 
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तुम्हें पार करने की इच्छा
 
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अक्सर नहीं होती
 
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भटक जाने का डर बना रहता है !
 
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था
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00:47, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण

समुद्र
तुम्हारे किनारे शरद के हैं

और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो

तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है

और हवाएँ
जो कई देशों को पार करती हुई
तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं
आसमान जैसी

तुम्हें पार करने की इच्छा
अक्सर नहीं होती
भटक जाने का डर बना रहता है !

था