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तुम्हारे साथ ज़िन्दगी रात भर वह चेहरा मेरे हाथों में थाउसकी आँखों में दिख रही थीतुम्हारे बाद जिंदा हूँ? मुझे अपनी उदास आँखें शायदबीते हुए वक्त की राख और दर्द से उबलते पलों का धुआँ। बहुत चाहा मन ने समय लौट आए बीतापरसमय का समय बदलना आसाँ होता तो क्या बात थी
तुम्हारे साथ मुस्कुराती थी एक रोज़ तुम्हारे बाद हँसती हूँ एक ठंड़ी-सी शामवो भी खिलखिला कर। जब अचानक चले गए थे तुमउस रात मौसम से ज़्यादा सर्दज़हन था मेरा ठंड़ा ठहरा और लगभग मरा हुआ। बहुत महीनों और बहुत सालों के सूरज ने मिल कर जद्दोजहद की तब कहीं कुछ गरमाहट मेरे वजूद के हिस्से आई पर प्राण फूँके कि यकीं दिला सकूँ नहीदेखोये अब भी नहीं पतावाकई जड़ को चेतन करनामैं हँस रही हूँआसाँ होता तो क्या बात थी
तुम्हारे साथ बहुत-सी बातें थी तुमने चाहा था कभी तुम्हारे बाद मेरा सिर्फ़ संवाद हैंमुझ जैसा न होनाठहरे हुएकुछ ख्वाहिशें जताई थीं सँभाले नापे-तोले और कुछ बंदिशें लफ्जों को बैलेंस करतेजोड़ दी उनके पीछे खुलते है होंठजैसे यूँ ही आदतन समझदारी की चूनरछोड़ दी जाए थाल में रोटी ओढ़ ली तृप्ति के बादकि जो बचा है ठीक लो वो बस तुम्हारा पर मन का पेट बचे टुकड़ों से भरना अबआसाँ होता तो क्या बात थी
तुम्हारे साथ चाव थे मेरे पास कल भी तुम्हारे बाद खानापूर्ति हैनही थी निरंतरता बनाए रखनामेरे पास आज भी ज़रूरत नही है या मजबूरी वो जादुई स्याही ये सत्य नगण्य है जो ज़िन्दगी के पन्नों से शाश्वत सच बस एक है सहूलियत अनुसार देखो अभी भी मिटा दे आने जाने वाले खानाबदोशों के बेतरतीब से लिखे हर्फ़और फिर से कोरा कर देउसे नई कहानी के लिए काले रंग पर रंग भरना आसाँ होता जिंदा ही हूँ तो क्या बात थी
तुम्हारे साथ शृंगार थे समय का समय बदलना तुम्हारे बाद बंजरपन ढकना मात्र आसाँ होता रह गई हैये साज-सजावट की चीजें ज्यों खंडहर परकाढ़ दिए चंद बेल-बूटेभम्रित करने कोदेखो कितना सुंदर है अब भी कामयाब हुई या नहीं हुईइस सारे आडंबर के नीचे दबी हुई पर जिंदा तो हूँ हीजैसे चाहा था तुमने मैं रहूँ जिंदा भी खुश भी  तुम्हारे साथ सेतुम्हारे बाद तक 'तुम्हारी जिंदगी'  हाँ! 'तुम्हारी जिंदगी' यहीं तो कहते थे तुम मुझे क्या बात थी।
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