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कैसे कटी जिनगी हमार / भोजपुरी
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05:15, 27 अप्रैल 2011
|भाषा=भोजपुरी
}}
<poem>
कइसे कटी जिनगी हमार
दई हो का हम कइलीं तुहार कि दु:ख हमें दे
दिहल..अ...
कि सुख मोर ले लिहल... अ... अ..
चारों तरफ भईंल अन्हार
हे सिरजनहार लगा द पार कि बड़ा दु:ख दे दिहल... अ...
</poem>
अनिल जनविजय
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