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"एकाकीपन / कुँवर दिनेश" के अवतरणों में अंतर
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+ | मेरे अन्तस्वक्, मेरे अन्तर्वयव में | ||
+ | स्मृतियों के मकड़े | ||
+ | फैला देते हैं अपने ऊतक जाले | ||
+ | मेरे मस्तिष्क के कोटरों में | ||
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+ | खूनी खटमल | ||
+ | मेरे व्यतीत प्रेम के | ||
+ | बनाने लगते हैं अपना निवास | ||
+ | मेरे हृदय में | ||
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+ | उम्मीद के बिच्छू | ||
+ | करते हैं मैथुनी नृत्य | ||
+ | मेरी आँखों में | ||
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+ | प्रेम प्रेतनी फिरने लगती है | ||
+ | समस्त नाड़ी संस्थान में | ||
+ | परितंत्रिका के हर एक तंतु में | ||
+ | हर शिरा, हर धमनी में | ||
+ | करती है संचरण | ||
+ | यह सब होता है अक्सर | ||
+ | रात्रि के अजीब से सन्नाटे में | ||
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+ | विलग प्रेम की स्मृति में | ||
+ | एक काव्यानुभूति | ||
+ | बन ओझा करती है | ||
+ | झाड़-फूँक | ||
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+ | करने को वशीभूत | ||
+ | मेरे भीतर का भूत― | ||
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+ | मेरा प्रेताविष्ट एकाकीपन। | ||
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13:54, 29 मई 2018 के समय का अवतरण
कई बार मैं बन जाता हूँ
एक प्रेतवाहित घर
मेरे अतीत के चमगादड़
चिपक जाते हैं
मेरे अन्तस्वक्, मेरे अन्तर्वयव में
स्मृतियों के मकड़े
फैला देते हैं अपने ऊतक जाले
मेरे मस्तिष्क के कोटरों में
खूनी खटमल
मेरे व्यतीत प्रेम के
बनाने लगते हैं अपना निवास
मेरे हृदय में
उम्मीद के बिच्छू
करते हैं मैथुनी नृत्य
मेरी आँखों में
प्रेम प्रेतनी फिरने लगती है
समस्त नाड़ी संस्थान में
परितंत्रिका के हर एक तंतु में
हर शिरा, हर धमनी में
करती है संचरण
यह सब होता है अक्सर
रात्रि के अजीब से सन्नाटे में
विलग प्रेम की स्मृति में
एक काव्यानुभूति
बन ओझा करती है
झाड़-फूँक
करने को वशीभूत
मेरे भीतर का भूत―
मेरा प्रेताविष्ट एकाकीपन।