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+ | छूते ही पोर | ||
+ | आँखों से बरसती | ||
+ | वासन्ती भोर | ||
+ | पलकों पे उतरें | ||
+ | सौ सौ गुलाल | ||
+ | चूमूँ अनन्त तक | ||
+ | मैं पोर -पोर | ||
+ | करे तुझमें मन | ||
+ | सदा अवगाहन। | ||
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16:39, 19 जून 2018 के समय का अवतरण
प्रथम ग्रास
मेरे उस प्रिय को
जो सदा पास
उसकी भूख में है
मेरी भी भूख
उसकी प्यास में है
मेरी भी प्यास।
उसका एक कौर
मुझे जो मिला
युगों- युगों की क्षुधा
हो गई शान्त
निहारूँ भरूँ नैन
उसी का रूप।
सहलाए मुझे ज्यों
सर्दी की धूप
कण्ठ में लरजता
सिन्धु -सा प्यार
दौड़ती लहर- सी
छूते ही पोर
आँखों से बरसती
वासन्ती भोर
पलकों पे उतरें
सौ सौ गुलाल
चूमूँ अनन्त तक
मैं पोर -पोर
करे तुझमें मन
सदा अवगाहन।
-0-