भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अशान्त मन ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
रहे प्यासे अधर
 
रहे प्यासे अधर
 
लौटा सागर
 
लौटा सागर
दे खाली गागर,
+
देके  खाली गागर,
 
चुप न बैठो  
 
चुप न बैठो  
 
कुछ तो है करना
 
कुछ तो है करना

07:09, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

अशान्त मन !
बहुत हुआ खेला
बीती पल में
मधुरिम चन्द्रिका
तृषित बेला
रहे प्यासे अधर
लौटा सागर
देके खाली गागर,
चुप न बैठो
कुछ तो है करना
खाली गागर
मिलकर भरना
कुछ हों आँसू
कुछ मधु मुस्कानें
कुछ व्यथाएँ
कुछ हों गीत नए
गाए न गए
जो कभी द्वार पर;
कर दो अब
वह प्यार मुखर
जिसको पाने
अधर भी तरसें
नैना नित बरसें।