भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गीत / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=कुमार मुकुल | ||
+ | }} | ||
+ | |||
जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने | जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने | ||
− | दूर हो | + | |
+ | दूर हो तुझ से बीतेंगे साल कितने | ||
+ | |||
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं | काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं | ||
+ | |||
फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है | फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है | ||
− | भर छाती | + | |
+ | भर छाती धँसकर जीता हूँ जीवन | ||
+ | |||
कभी ये नियति देती उछाल भी हैं | कभी ये नियति देती उछाल भी हैं | ||
+ | |||
जाने... | जाने... | ||
+ | |||
फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं | फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं | ||
+ | |||
लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है | लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है | ||
− | खट-खट कर कैसे राह बनाता | + | |
− | जानता | + | खट-खट कर कैसे राह बनाता हूँ थोड़ी |
+ | |||
+ | जानता हूँ आगे बैठा भूचाल भी है | ||
+ | |||
जाने... | जाने... | ||
− | दिल्ली, | + | |
+ | |||
+ | '''(रचनाकाल :दिल्ली,1997) |
19:34, 5 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने
दूर हो तुझ से बीतेंगे साल कितने
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं
फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है
भर छाती धँसकर जीता हूँ जीवन
कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
जाने...
फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं
लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है
खट-खट कर कैसे राह बनाता हूँ थोड़ी
जानता हूँ आगे बैठा भूचाल भी है
जाने...
(रचनाकाल :दिल्ली,1997)