Changes

एक प्रतिशत / शैलजा सक्सेना

1,505 bytes added, 00:12, 13 अगस्त 2018
<poem>
हर दिन लेकर आता है एक नयी चुनौती !
ललकारता है सुबह का सूरज…
कि दिन की सड़क पर
आज कितने कदम चलोगे अपने सपने की दिशा में?
और सच बात तो यह है
कि 90% दिन तो मुँह, पेट और हाथों के नाम ही हो जाता है,
दिमाग और सपनों का नम्बर ही कब आता है?
उस बचे 10% में से 8%
जाता है घर के और परिवार के नाम,
बचे दो प्रतिशत में से एक प्रतिशत
मैं
अपनी थकावट को सहलाते
अपने शरीर के दर्दों की गुफाओं में घूमते
निकाल देती हूँ
और बचे १ प्रतिशत को देती हूँ
अपने सपने को….!
मुस्कुरा कर दिन ख़त्म होने से पहले
दिन को बताती हूँ;
इस तरह मैं हर रोज़ अपने सपनों की
तरफ एक प्रतिशत आती हूँ,
रात, तारों के साथ मिल कर अपनी जीत का
जश्न मनाती हूँ!!
</poem>