भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन शब्दों में / मनमोहन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
और जो भूल गया है | और जो भूल गया है | ||
वह भी इन्हीं में है | वह भी इन्हीं में है | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
20:26, 5 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
इन शब्दों में
वह समय है जिसमें मैं रहता हूँ
ग़ौर करने पर
उस समय का संकेत भी यहीं मिल जाता है।
जो न हो
लेकिन मेरा अपना है
यहाँ कुछ जगहें दिखाई देंगी
जो हाल ही में ख़ाली हो गई हैं
और वे भी
जो कब से ख़ाली पड़ी हैं
यहीं मेरा यक़ीन है
जो बाक़ी बचा रहा
यानी जो ख़र्च हो गया
वह भी यहीं पाया जाएगा
इन शब्दों में
मेरी बची-खुची याददाश्त है
और जो भूल गया है
वह भी इन्हीं में है