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निर्मलमना ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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15:46, 16 अक्टूबर 2018
<poem>
1
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विश्वास छला
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ईर्ष्या अनल जगी
सब ही जला
विद्रूप हुआ रूप।
4
'''
निर्मलमना !
'''
गोमुख के जल-सा
पावन प्यार
वीरबाला
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