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नींद से आगे की मंज़िल / शहरयार

47 bytes added, 14:50, 29 सितम्बर 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
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{{KKCatNazm}}<poem>
ख़्वाब कब टूटते हैं
 
आँखें किसी ख़ौफ़ की तारीकी से
 
क्यों चमक उठती हैं
 
दिल की धड़कन में तसलसुल बाक़ी नहीं रहता
 
ऎसी बातों को समझना नहीं आसान कोई
 
नींद से आगे की मंज़िल नहीं देखी तुमने।
</poem>
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