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"हिन्दी / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'" के अवतरणों में अंतर

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हरदम सावधान रहना है।
 
जो स्वदेश करते बदनाम,
 
लेकर आजादी का नाम;
 
देश विरोधी करते काम।
 
  
हरदम सावधान रहना है।
+
हिन्दी आत्मा देश की, संस्कृति की पहचान।
कट्टरपंथ नया धर बाना,  
+
राष्ट्र धर्म की चेतना, विश्वप्रेम विज्ञान॥
देशद्रोह का गाता गाना,  
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इसका सुर जानापहचाना।
+
  
हरदम सावधान रहना है।
+
हिन्दी गौरवबोध है, अपनापन अरु नेह।
इनके पास बहुत से साधन,
+
भारत माँ की आत्मा, भारत माँ की देह॥
धनदौलत, सुविधा, आराधना,  
+
दाँवपेंच, छलकपट प्रसाधन।
+
  
हरदम सावधान रहना है।
+
संस्कृत की बेटी भली, संस्कृति का अनुराग।
समाचारसूचना प्रसारण,  
+
स्वाभिमान, सच्चेतना, मानवता, शुचि त्याग॥
इनके हाथों है निर्धारण,  
+
जिसमें मंत्र छिपा है मारण।
+
  
हरदम सावधान रहना है।
+
यह मैत्री की महक है, यह सुहागसिन्दूर।
इनकी राजनीति है गंदी,  
+
यह मणिमाला ज्ञान की, यौवनरस से पूर॥
इनके हाथों प्रतिभा बंदी,  
+
ये पथभ्रष्ट, क्षुद्र, छलछंदी।
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हरदम सावधान रहना है।
+
ये प्रचार मिडिया के स्वामी,
+
मानो सबके अंतर्यामी,
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सारा चिन्तन है प्रतिगामी।
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माँ की इसमें माधुरी, भार्या का सा प्यार।
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गुरु जैसा उपदेश है, शिक्षा का भण्डार॥
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घर, वन, सभा, समाज में हिन्दी को सप्रेम।
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बोलें, हस्ताक्षर करें, इसमें है सुख क्षेम॥
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बातचीत, घरबार हो, प्यार हो कि व्यापार।
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सभी जगह पर कीजिये हिन्दी का व्‍यवहार॥
 
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01:45, 16 जनवरी 2019 के समय का अवतरण


हिन्दी आत्मा देश की, संस्कृति की पहचान।
राष्ट्र धर्म की चेतना, विश्वप्रेम विज्ञान॥

हिन्दी गौरवबोध है, अपनापन अरु नेह।
भारत माँ की आत्मा, भारत माँ की देह॥

संस्कृत की बेटी भली, संस्कृति का अनुराग।
स्वाभिमान, सच्चेतना, मानवता, शुचि त्याग॥

यह मैत्री की महक है, यह सुहागसिन्दूर।
यह मणिमाला ज्ञान की, यौवनरस से पूर॥

माँ की इसमें माधुरी, भार्या का सा प्यार।
गुरु जैसा उपदेश है, शिक्षा का भण्डार॥

घर, वन, सभा, समाज में हिन्दी को सप्रेम।
बोलें, हस्ताक्षर करें, इसमें है सुख क्षेम॥

बातचीत, घरबार हो, प्यार हो कि व्यापार।
सभी जगह पर कीजिये हिन्दी का व्‍यवहार॥