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<poem>
 
'''लोरी'''<br>
छोटी-छोटी बकरी<br>
 
छोटी–छोटी गैया ।<br>
 
गैया चराए मेरे<br>
 
छोटे कन्हैया ।<br>
 
छोटे-छोटे हाथ <br>
 
छोटे-छोटे पाँव<br>
 
ठुमक-ठुमक जाए<br>
 
गोरी के गाँव ।<br>
 
आँखों में दिखता<br>
 
है आसमान ।<br>
 
पतले –से होठों पे<br>
 
छाई मुस्कान ।<br>
 
किलक-किलक में<br>
 
सारे गुणगान<br>
 
तुतली-सी बोली में<br>
 
छिपे भगवान ।<br>
मेरे मामा
 
बिल्कुल गामा ।<br>
 
पहने कुर्ता<br>
 
और पजामा ॥<br>
 
बड़े सवेरे<br>
 
हैं जग जाते ।<br>
 
पाँच मील तक<br>
 
बीसों केले<br>
 
और चपाती ।<br>
 
एक बार में<br>
 
चट कर जाते ॥<br>
मेरे मामा <br>
 
अच्छे मामा ॥<br>
-0-
'''आ भाई सूरज'''<br>
आ भाई सूरज-<br>
 
उतर धरा पर<br>
 
ले आ गाड़ी<br>
 
भरकर धूप ।<br>
 
आ भाई सूरज-<br>
 
बैठ बगल में<br>
 
तापें हाथ<br>
 
दमके रूप ।<br>
 
आ भाई सूरज-<br>
 
कोहरा अकड़े<br>
 
तन को जकड़े<br>
 
थके अलाव ।<br>
 
आ भाई सूरज<br>
 
चुपके-चुपके<br>
 
छोड़ लिहाफ़<br>
 
अपने गाँव ।<br>
-0-
'''धूप की चादर'''<br>
घना कुहासा छा जाता है , <br>
 
ढकते धरती अम्बर ।<br>
 
ठण्डी-ठण्डी चलें हवाएँ , <br>
 
सैनिक जैसी तनकर ।<br>
 
भालू जी के बहुत मज़े हैं-<br>
 
ओढ़ लिया है कम्बल ।<br>
 
सर्दी के दिन बीतें कैसे<br>
 
ठण्डा सारा जंगल ।<br>
 
खरगोश दुबक एक झाड़ में<br>
 
काँप रहा था थर-थर ।<br>
 
ठण्ड बहुत लगती कानों को<br>
 
मिले कहीं से मफ़लर ।<br>
 
उतर गया आँगन में सूरज<br>
 
बिछा धूप की चादर ।<br>
 
भगा कुहासा पल भर में ही<br>
 
तनिक न देखा मुड़कर ।<br>