{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
'''लोरी'''<br>
छोटी-छोटी बकरी<br>
छोटी–छोटी गैया ।<br>
गैया चराए मेरे<br>
छोटे कन्हैया ।<br>
छोटे-छोटे हाथ <br>
छोटे-छोटे पाँव<br>
ठुमक-ठुमक जाए<br>
गोरी के गाँव ।<br>
आँखों में दिखता<br>
है आसमान ।<br>
पतले –से होठों पे<br>
छाई मुस्कान ।<br>
किलक-किलक में<br>
सारे गुणगान<br>
तुतली-सी बोली में<br>
छिपे भगवान ।<br>
मेरे मामा
बिल्कुल गामा ।<br>
पहने कुर्ता<br>
और पजामा ॥<br>
बड़े सवेरे<br>
हैं जग जाते ।<br>
पाँच मील तक<br>
बीसों केले<br>
और चपाती ।<br>
एक बार में<br>
चट कर जाते ॥<br>
मेरे मामा <br>
अच्छे मामा ॥<br>
-0-
'''आ भाई सूरज'''<br>
आ भाई सूरज-<br>
उतर धरा पर<br>
ले आ गाड़ी<br>
भरकर धूप ।<br>
आ भाई सूरज-<br>
बैठ बगल में<br>
तापें हाथ<br>
दमके रूप ।<br>
आ भाई सूरज-<br>
कोहरा अकड़े<br>
तन को जकड़े<br>
थके अलाव ।<br>
आ भाई सूरज<br>
चुपके-चुपके<br>
छोड़ लिहाफ़<br>
अपने गाँव ।<br>
-0-
'''धूप की चादर'''<br>
घना कुहासा छा जाता है , <br>
ढकते धरती अम्बर ।<br>
ठण्डी-ठण्डी चलें हवाएँ , <br>
सैनिक जैसी तनकर ।<br>
भालू जी के बहुत मज़े हैं-<br>
ओढ़ लिया है कम्बल ।<br>
सर्दी के दिन बीतें कैसे<br>
ठण्डा सारा जंगल ।<br>
खरगोश दुबक एक झाड़ में<br>
काँप रहा था थर-थर ।<br>
ठण्ड बहुत लगती कानों को<br>
मिले कहीं से मफ़लर ।<br>
उतर गया आँगन में सूरज<br>
बिछा धूप की चादर ।<br>
भगा कुहासा पल भर में ही<br>
तनिक न देखा मुड़कर ।<br>