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120
मैं  एकाकी कब रहा,जब तुम मेरे साथ।
छोडूँगा तुमको नहीं,यह जन्मों का साथ।
221
हर धड़कन में मैं बसा, जैसे तन में साँस। 
आएँगे तूफ़ान भी ,फिर भी तेरे साथ॥
322
किसी डोर से कब बँधा,मेरा यह संसार।
तरसे होंगे हम कभी,बाँधे तेरा प्यार।।
423
मुझमें तो कुछ था नहीं,तुझमें था यह खास।
मुझको देखा तक नहीं,फिर भी यह विश्वास!!
524
देह -धर्म से भी परे,हम दोनों  की प्यास।
सुख- दुख साझे हो गए,बच गई जीवन-आस।।
625
लोहे का व्यापार हो, या कोयले की खान । 
समझे वह कब भला,तुम हीरे की खान ॥
726
तेरा माथा चाँद-सा,चूम लिया जिस बार।
मन की पीड़ा छँट गई बरसी फिर बौछार ॥
827
मन में तुम हो शारदा , तन में तुम उल्लास । 
उसे न कुछ भी चाहिए, तुम जिस मन के पास ॥
928
तुझको जितने दुख मिलें, मुझको देना दान ।
मेरी बस यह कामना,दूँ तुझको मुस्कान ॥
1029
करूँ आचमन हर घड़ी,  गिरे नयन से नीर । 
मेरा सुख केवल यही, हर लूँ तेरी पीर ॥
1130
दानव जिसके मन बसे, वह बाँटेगा शूल । 
हम-तुम तो उपवन रहे, केवल बाँटें फूल ॥ 
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