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यक़ीन मानो — सुबह सबकुछ लगता है भला
हमारे आऊल <ref>तातारी और कोहकाफ़ की भाषाओं में इस शब्द का मतलब है — गाँव</ref> में फटकती नहीं हैं पापात्माएँचूल्हे में सिंकती है रोटी, दीवार पर थिरकती हैम हैं किरणें
बच्चे, बूढ़े और जवान सब के सब ज़िन्दादिल, अलमस्त ।
सुनह ! तुम्हारे आने पर तुम्हारे साथ देखी मैंने दुनिया
मैं फटाफट काटता हूँ एक तरबूज आतिथ्य के लिए और करता हूँ इन्तज़ार पहाड़ का,जो है ख़ुशी की मदिरा में बेतरह चूर ।
विस्मय-विमुग्ध मैं निहारता हूँ चारों ओर
अपनी ही सृष्टि पर चकित
पता नहीं यह कल्पना है या
मैंने ही गढ़ा है इन्हें हाथों हाथ
 
सुबह है अन्त सपने का — अन्त परेशानियों का
सुबह है प्रारम्भ यात्रा का, शुरुआत रास्ते की
सुबह है जन्म श्रम से भरे-पूरे दिन का
सुबह है समय नए-नए शब्दों के खिलने का
 
सुबह हमें देती है उपहार में फूलों के गुच्छे और काम,
देती है बच्चों को फूल और खिलौने,
सुबह हर्ष का बायस है, अश्वारोही और श्रमिक के वास्ते
सुबह — सिरहाने का पत्थर मुझे लगता है कोमल तकिये-सा
 
सुबह के आने सेसमाप्त सारी दुश्चिन्ताएँ
सबकुछ ठीक-ठाक, सही-सलामत निज़ाम में
नभ नभ-सा, धरती धरती-सी,
बग़ीचे में पक रही हैं नाशपातियाँ और
घरों में गून्धा जा रहा है आटा ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[सुधीर सक्सेना]]'''
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