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सोते-जागते / मंगलेश डबराल

3 bytes added, 05:07, 18 जुलाई 2019
जागते हुए मैं अपने घाव दिखलाने से बचता हूँ
खुद ख़ुद से भी कहता रहता हूँ — नहीं, कोई दर्द नहीं है
लेकिन नीन्द में आँसुओं का एक सैलाब आता है
और मेरी आँखों को
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