"एक विज्ञापन / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार | |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
सोचता हूँ- | सोचता हूँ- | ||
− | |||
गीत लिखने से कहीं अच्छा, | गीत लिखने से कहीं अच्छा, | ||
− | |||
जुटा लूँ हर तरफ़ से क़ीमती सामान । | जुटा लूँ हर तरफ़ से क़ीमती सामान । | ||
− | |||
और जितने उपकरण हैं गीत के- | और जितने उपकरण हैं गीत के- | ||
− | |||
मन को भुलाने, और धन की, और | मन को भुलाने, और धन की, और | ||
− | |||
जन की फ़िक्र से पीछा छुड़ाने के- | जन की फ़िक्र से पीछा छुड़ाने के- | ||
− | |||
युवतियाँ, प्रेम, आँसू , विरह, पीड़ा, | युवतियाँ, प्रेम, आँसू , विरह, पीड़ा, | ||
− | |||
सेक्स की अवरुद्ध क्रीड़ा, | सेक्स की अवरुद्ध क्रीड़ा, | ||
− | |||
सुप्त मन में गड़ी फाँसें, | सुप्त मन में गड़ी फाँसें, | ||
− | |||
गरम या ठंडी उसाँसें और | गरम या ठंडी उसाँसें और | ||
− | |||
सपने हार के या जीत के- | सपने हार के या जीत के- | ||
− | |||
सबको क़रीने से सजाऊँ, | सबको क़रीने से सजाऊँ, | ||
− | |||
ढोल ज़ोरों से शहर भर में बजाऊँ, | ढोल ज़ोरों से शहर भर में बजाऊँ, | ||
− | |||
छाप कर परचे- | छाप कर परचे- | ||
− | |||
गली-सड़कों-घरों में पहुँच जाऊँ- | गली-सड़कों-घरों में पहुँच जाऊँ- | ||
− | |||
"प्रेमियो, साहित्यिको, विक्षिप्त कवियो । | "प्रेमियो, साहित्यिको, विक्षिप्त कवियो । | ||
− | |||
तम-भरे संसार के अनगिनत रवियो । | तम-भरे संसार के अनगिनत रवियो । | ||
− | |||
मुफ़्त ले जाओ यहाँ से माल खुदरा, | मुफ़्त ले जाओ यहाँ से माल खुदरा, | ||
− | |||
कुछ दिनों से गीत का बाज़ार उतरा | कुछ दिनों से गीत का बाज़ार उतरा | ||
− | |||
है, इसीसे भूल सारा मान या सम्मान | है, इसीसे भूल सारा मान या सम्मान | ||
− | |||
सोचा है कि अब इस तरफ़ दूँगा ध्यान- | सोचा है कि अब इस तरफ़ दूँगा ध्यान- | ||
− | |||
मैंने खोल ली है शहर में साहित्य के परचून की दूकान, | मैंने खोल ली है शहर में साहित्य के परचून की दूकान, | ||
− | |||
जिसमें 'मसि' तथा 'कागद', 'कलम' से ले | जिसमें 'मसि' तथा 'कागद', 'कलम' से ले | ||
− | |||
'विचारों' 'भावनाओं', 'कल्पनाओं' तक | 'विचारों' 'भावनाओं', 'कल्पनाओं' तक | ||
− | |||
मिलेंगे हर किसिम' हर ढंग के सामान । | मिलेंगे हर किसिम' हर ढंग के सामान । | ||
− | |||
आए हैं समन्दर पार से 'लेटेस्ट माँडल', | आए हैं समन्दर पार से 'लेटेस्ट माँडल', | ||
− | |||
काव्य-बाला को सजाने के लिए | काव्य-बाला को सजाने के लिए | ||
− | |||
रंगीन आभूषन तथा परिधान । | रंगीन आभूषन तथा परिधान । | ||
− | |||
आएँ आप, देखें और परखें, | आएँ आप, देखें और परखें, | ||
− | |||
करेंगे मुझ पर बड़ा उपकार । | करेंगे मुझ पर बड़ा उपकार । | ||
− | |||
-अजितकुमार ।" | -अजितकुमार ।" | ||
+ | </poem> |
19:51, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सोचता हूँ-
गीत लिखने से कहीं अच्छा,
जुटा लूँ हर तरफ़ से क़ीमती सामान ।
और जितने उपकरण हैं गीत के-
मन को भुलाने, और धन की, और
जन की फ़िक्र से पीछा छुड़ाने के-
युवतियाँ, प्रेम, आँसू , विरह, पीड़ा,
सेक्स की अवरुद्ध क्रीड़ा,
सुप्त मन में गड़ी फाँसें,
गरम या ठंडी उसाँसें और
सपने हार के या जीत के-
सबको क़रीने से सजाऊँ,
ढोल ज़ोरों से शहर भर में बजाऊँ,
छाप कर परचे-
गली-सड़कों-घरों में पहुँच जाऊँ-
"प्रेमियो, साहित्यिको, विक्षिप्त कवियो ।
तम-भरे संसार के अनगिनत रवियो ।
मुफ़्त ले जाओ यहाँ से माल खुदरा,
कुछ दिनों से गीत का बाज़ार उतरा
है, इसीसे भूल सारा मान या सम्मान
सोचा है कि अब इस तरफ़ दूँगा ध्यान-
मैंने खोल ली है शहर में साहित्य के परचून की दूकान,
जिसमें 'मसि' तथा 'कागद', 'कलम' से ले
'विचारों' 'भावनाओं', 'कल्पनाओं' तक
मिलेंगे हर किसिम' हर ढंग के सामान ।
आए हैं समन्दर पार से 'लेटेस्ट माँडल',
काव्य-बाला को सजाने के लिए
रंगीन आभूषन तथा परिधान ।
आएँ आप, देखें और परखें,
करेंगे मुझ पर बड़ा उपकार ।
-अजितकुमार ।"