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नैनों से चुए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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21:34, 13 सितम्बर 2019
तरसूँ रात दिन
दिखे न चाँद।
85
दुग्ध धवल
छिटकी है चंद्रिका
भोली मुस्कान।
86
साथी सन्नाटा
जगा है रात
-
0-
दिन
मूक पहरा।
</poem>
वीरबाला
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