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"शपथ / जोशना बनर्जी आडवानी" के अवतरणों में अंतर

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कितना श्रृंखलित है  
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मेरे भीतर एक लड़की है
अपराध का बोध
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जो पन्नो से बनी है
कितना ईश्वरीय है
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तुम्हारे बाहर एक दुनिया है
प्रतीक्षा का प्रयोजन
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जो ईश्वर ने रची है
हमें ईश्वर की नही
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ईश्वर तो ईस्ट इंडिया कंपनी थे
अपराध की ज़रुरत है
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जिसे कुछ नरभक्षी खदेड़ चुके हैं
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नरभक्षी तो भीड़ मे धंसा है
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जिसने मीठी भाषा का अंगरखा पहनरखा है
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अंगरखा के अंदर का हिस्सा
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गांधारी रूपी पावनता भी ना देख सकी
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पावनता हर सब्ज़ी वाला अपने
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तराज़ू के नीचे चिपकाए गली गली फिरता है
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तराज़ू अपने हाथ मे लिये देवी
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गै़रकानूनी कानून को न्याय दिलाती है
  
कितनी कारोबारी है
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इन सबके बीच
नौजवानो की प्रतिभा
+
कवि शपथ लेते हैं कि वे अब कभी जन्म नही लेंगे
कितना साहित्यिक है
+
कलम का लहुलूहान
+
हमें कारोबार की नही
+
साहित्य की ज़रुरत है
+
 
+
कितना सामन्तवादी है
+
समाज का हर गुट
+
कितनी सियासती है
+
गले की कुप्पी की धधक
+
हमें समाज की नही
+
धधक की ज़रुरत है
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22:39, 17 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण

मेरे भीतर एक लड़की है
जो पन्नो से बनी है
तुम्हारे बाहर एक दुनिया है
जो ईश्वर ने रची है
ईश्वर तो ईस्ट इंडिया कंपनी थे
जिसे कुछ नरभक्षी खदेड़ चुके हैं
नरभक्षी तो भीड़ मे धंसा है
जिसने मीठी भाषा का अंगरखा पहनरखा है
अंगरखा के अंदर का हिस्सा
गांधारी रूपी पावनता भी ना देख सकी
पावनता हर सब्ज़ी वाला अपने
तराज़ू के नीचे चिपकाए गली गली फिरता है
तराज़ू अपने हाथ मे लिये देवी
गै़रकानूनी कानून को न्याय दिलाती है

इन सबके बीच
कवि शपथ लेते हैं कि वे अब कभी जन्म नही लेंगे