"म को हुँ ? / गीता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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मान्छेको आकृति लिएर | मान्छेको आकृति लिएर |
12:07, 15 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
एउटा कालो छाया
मान्छेको आकृति लिएर
विना कुनै दिशाबोध
विना कुनै गन्तव्य
भौँतारिरहेछ, लक्ष्यविहीन चङ्गाजस्तै
विवशताले टुक्रिएको छ
वाध्यताले उठिरहेछ
यदाकदा
कौतुहलता देखापर्छ
फेरी शून्य छ
मौन छ ऊ
भनिन्छ
ऊ मान्छे होइन
ऊ मान्छेको बहुमतमा बाँचेको छैन
म मान्छे नभनिएको मान्छेलाई
नियाल्छु उत्सुकताले
ऊ
मान्छेजस्तै हिँडिरहेको छ
बेकसुर आफैमा हराइरहेको छ
म उसलाई खोजिरहेछु
ऊ आफैलाई खोजिरहेछ
मैले उसलाई भेट्टाएपनि
थाहा छैन
उसले आफूलाई भेट्यो कि भेटेन ?
कहिले टढा, कहिले नजिक
ऊ वर्षौँदेखि मान्छेकै आँखामा घुमिरहेछ
सायद मान्छेका मुटुहरूमा
आफ्नो अपनत्व खोजिरहेछ
थाहाछैन के भेट्यो उसले
मान्छेहरू उसलाई
मान्छेको गन्तीमा राख्न रुचाउँदैनन्
तर ऊ मान्छेकै मुखाकृतिमा छ
मान्छेकै भावभङ्गीमा छ
म उसँग परिचय माग्छु
ऊ
आफैलाई सोधिरहेछ-
म को हुँ ?